Kejriwal बाहर, CBI तोता की फजीहत

Kejriwal बाहर, CBI तोता की फजीहत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल 170 दिनों के बाद आज जेल से बाहर आ गए . सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बेल दे दी. केजरीवाल की गिरफ़्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज बंटे हुए है. एक ने कहा गिरफ़्तारी उचित है, जबकि दुसरे ने कहा गिरफ़्तारी गलत है. CBI डांट पड़ी, कहा तोता पिजरे से बाहर आओ.

Kejriwal बाहर, CBI तोता की फजीहत जमानत मिली

सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई के खिलाफ बेहद तीखी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई को पिंचरे में बंद तोते की धारणा को दूर करना होगा। उसे पिंचरे से बाहर निकलने की जरूरत है।

दोनों जजों ने अलग अलग फैसला सुनाया


केजरीवाल को जमानत देने वाली दो सदस्यीय बेंच के सदस्य जस्टिस भुइयां ने 31 पेज का एक अलग फैसला लिखते हुए कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित एक क्रियाशील लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है और एक जांच एजेंसी को सभी प्रकार के संदेह से परे होना चाहिए। उन्होंने केजरीवाल को जमानत देते हुए अपने फैसले में कहा कि कुछ वर्ष पहले ही इस अदालत ने सीबीआई की आलोचना करते हुए उसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी।

यह जरूरी है कि सीबीआई ‘पिंजरे में बंद तोते की धारणा’ से बाहर निकले। धारणा यह होनी चाहिए कि सीबीआई ‘पिंजरे में बंद तोता’ नहीं, बल्कि स्वतंत्र जांच एजेंसी है।

जस्टिस लोढ़ा ने कहा था CBI की तोता


कोयला घोटाले की जांच को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आरएम लोढा ने वर्ष 2013 में सीबीआई की तुलना पिंचरे में बंद तोते से की थी जो सिर्फ अपने मालिक की आवाज सुनता है।


जस्टिस भुइयां ने कहा कि सीबीआई देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी है और यह लोगों के हित में है कि वह न केवल पारदर्शी हो, बल्कि पारदर्शी प्रतीत भी हो। उन्होंने कहा कि कानून का शासन हमारे संवैधानिक गणराज्य की एक बुनियादी विशेषता है, जो यह अनिवार्य बनाता है कि जांच निष्पक्ष, पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए। इस अदालत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि निष्पक्ष जांच भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 के तहत आरोपी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।


जस्टिस भुइयां ने कहा कि जांच न केवल निष्पक्ष होनी चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखनी भी चाहिए तथा ऐसी धारणा को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई तथा गिरफ्तारी दमनात्मक एवं पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई।

केजरीवाल की गिरफ्तारी वैध या अवैध, दोनों न्यायाधीशों में मतभेद


केजरीवाल की गिरफ्तारी की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों न्यायाधीशों के बीच मतभेद उभर कर सामने आ गए। बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सूर्यकांत ने गिरफ्तारी को पूरी तरह वैध कहा कि जबकि जस्टिस उज्जल भुइयां ने अपने साथी जज के मत से असहमति व्यक्त की।

जस्टिस भुइयां ने गिरफ्तारी को अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया


जस्टिस सूर्यकांत ने सीआरपीसी की धारा 41 की विभिन्न उपधाराओं का जिक्र करते हुए केजरीवाल की गिरफ्तारी की प्रक्रिया में किसी तरह की खामी नहीं पाई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों के आलोक में गिरफ्तारी को सही बताया। लेकिन जस्टिस भुइयां ने गिरफ्तारी को अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया। उनका मत है कि सीबीआई ने केजरीवाल को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया कि वह ईडी केस में जमानत मिलने के बावजूद जेल से बाहर न आ पाएं।

जज ने सीबीआई की नीयत पर सवाल उठाए। जस्टिस भुइयां ने कहा कि विशेष अदालत की जज ने 20 जून को ईडी मामले में केजरीवाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने अगले ही दिन ईडी के मौखिक उल्लेख पर विशेष अदालत के जमानत आदेश पर रोक लगा दी थी और बाद में जमानत आदेश को खारिज कर दिया था।

सीबीआई ने इस बीच केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने 22 महीने पहले एफआईआर दर्ज की थी और इस सिलसिले में केजरीवाल को हिरासत में लेने के लिए कदम नहीं बढ़ाए। लेकिन ईडी केस में जेल में रहते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ट्रायल को सजा में तब्दील नहीं किया जा सकता।

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