Prashant Kishor : हाल ही में बिहार Bihar बीपीएससी BPSC छात्रों का मुद्दा देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर इस मुद्दे को लेकर गांधी मैदान में अनशन पर बैठे हैं। वह छात्रों के हित को बहुत मजबूती से उठाने की बात कर रहे हैं। यह बिहार की राजनीति के लिए भी एक बड़ी बात है। बिहार, जो हमेशा अपने राजनीतिक मुद्दों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र रहता है, वह इस मुद्दे से भी पूरे देश में सुर्खिया बटोर रहा है। अब सवाल यह है कि क्या युवा वर्ग को साध कर प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में अपनी जगह बना सकते हैं?
Prashant Kishor : आंदोलन और नेताओं के उभरने का इतिहास बहुत ही पुराना है
भारतीय राजनीति में कई मौके ऐसे आए हैं, जब राजनीति में नए प्रयोग देखने को मिला है। वास्तव में आंदोलन और नेताओं के उभरने का इतिहास बहुत ही पुराना है, इसे पहले हम जेपी आंदोलन में भी बखूबी देख सकते हैं। आपको बता दें कि 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई थी. यह देश भर में जेपी आंदोलन के रूप में जाना गया। इस आंदोलन से नीतीश कुमार, लालू यादव, और अन्य प्रभावी नेताओं का उदय हुआ।
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समाज का नेतृत्व युवाओं के हाथ में दे दो
कहा जाता है कि समाज में क्रांति लानी है तो समाज का नेतृत्व युवाओं के हाथ में दे दो। यही बात आज के बिहार में भी लागू होती है। इस आंदोलन के द्वारा प्रशांत बिहार के युवाओं को साधने का प्रयास कर रहे हैं। आधुनिक युग के इतिहास के किसी भी दौर में, किसी भी देश में क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन में छात्रों-युवाओं की अहम भूमिका रही है। साल 2025 में ही बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टयिां पूरी शक्ति के साथ चुनाव लड़ने जा रही हैं। सभी दल अपने मुद्दों के साथ जनता के बीच में जाने और जनाधार को मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में छात्रों का मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
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प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में अपनी जगह बना पाते हैं?
आपको बता दें कि जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत को देश के एक बड़े चुनावी रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है । वह अपने पद यात्रा और दल के गठन के द्वारा बिहार कि राजनीति में अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं । इसी क्रम में वह बिहार के विभिन्न मुद्दों के लेकर सामने आ रहे हैं। हालांकि प्रशांत किशोर के लिए यह राह इतनी आसान नहीं है। बिहार में उन्हें कड़ी राजनीतिक चुनौती मिलने वाली है। बिहार में जाति, धर्म और अन्य तमाम तरह के चुनावी समीकरणों का मुकाबला करना होगा। वहीं नई पार्टी होने के कारण उन्हें अपना जनाधार शून्य से शुरू करना होगा। अब देखना यह है कि क्या प्रशांत किशोर इन बाधाओं को पार कर बिहार की राजनीति में अपनी जगह बना पाते हैं?

Writer : Deepak Dwivedi , Journalist, columnist.