mahakumbh : प्रयागराज के महाकुंभ नगर ने तीन नदियों के संगम पर आज आस्था का सैलाब जुट गया है। इस सैलाब में भारत के अलावा दूर-दूराज देशों से लोग आये है। दुनियाभर के लिए महाकुंभ कोतूह का कारण बना हुआ है। कैसे एक त्रिवेणी में लाखों लोग आस्था के साथ जुटे और अपने मन को स्वच्छ कर रहे हैं।
कल्पवास की शुरूआत
इसके साथ ही महाकुम्भ की विशिष्ट परंपरा कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है। पद्म पुराण और महाभारत के अनुसार संगम तट पर माघ मास में कल्पवास करने से सौ वर्षों तक तपस्या करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। विधि-विधान के अनुसार लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम तट पर केला,तुलसी और जौं रोपकर एक महा व्रत और संयम का पालन करते हुए कल्पवास की शुरुआत की।
अविरल-निर्मलािवेणी
प्रथम स्नान पर्व पर आज 1.50 करोड़ सनातन आस्थावानों ने अविरल-निर्मलािवेणी में स्नान का पुण्य लाभ अर्जित किया। प्रथम स्नान पर्व को सकुशल संपन्न कराने में सहभागी महाकुम्भ मेला प्रशासन, प्रयागराज प्रशासन,पुलिस, नगर निगम प्रयागराज, स्वच्छाग्रहियों, गंगा सेवा दूतों, कुम्भ सहायकों, धार्मिक-सामाजिक संगठनों, विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों तथा मीडिया जगत के बंधुओं सहित महाकुम्भ से जुड़े केंद्र व प्रदेश सरकार के सभी विभागों को हृदय से साधुवाद। पुण्य फलें, महाकुम्भ चलें।
संगम की रेती पर बसे भव्य एवं सुरम्य अस्थायी जिले में महाकुंभ में उमड़ते जनसैलाब के विहंगम दृश्य के साक्षी अमेरिका, रूस, जर्मनी, इटली, इक्वाडोर समेत तमाम देशों से आये विदेशी श्रद्धालु भी बने। मेला प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार शाम चार बजे तक एक करोड़ 60 लाख लोग संगम में पविा डुबकी लगा चुके थे। स्नान करने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहने का अनुमान है।
पहले स्नान पर्व पौष पूर्णिमा
पहले स्नान पर्व पौष पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को पुलिस के जवान चप्पे चप्पे पर सतर्क निगाहों के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करते दिखे। इस दौरान देश दुनिया के कोने कोने से आये श्रद्धालुओं के प्रति उनका विनम्र व्यवहार आकषर्ण का केंद्र बना। पांटून ब्रिज हो या सेक्टर, श्रद्धालु जब भी पुलिस बल से कहीं भी जाने की राह पूछते तो पुलिस कर्मी उन्हें पूरी विनम्रता के साथ उनके गंतव्य के लिए राह दिखा देते। पुलिस की यह विनम्रता देखकर श्रद्धालु भी बेहद खुश नजर आए।
आस्था के महासंगम में चहुंओर सारा दिन हर-हर गंगे के जयकारे गूंजते रहे। साधु संतों की उपस्थिति से वातावरण भक्ति रस से ओतप्रोत बना रहा। गरीब अमीर, जाति धर्म से परे आस्था का यह समागम देश की एकता और अखंडता का प्रतीक बन कर दुनिया भर में अपनी आभा फैला रहा था।
मकर संक्रांति पर सबसे पहले डुबकी लगायेगा पंचायती अखाड़ा और अटल अखाड़ा
आस्था के महाकुंभ में मंगलवार को मकर संक्रांति Makar sankranti के अवसर पर संगम में सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी एवं श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा अमृत स्नान करेंगे। महाकुंभ मेला प्रशासन द्वारा सोमवार को जारी कार्यक्रम के अनुसार सुबह सवा छह बजे श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी एवं श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा अमृत स्नान करेंगे जिसके बाद सात बज कर पांच मिनट पर श्री तपोनिधि पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा, एवं श्री पंचायती अखाड़ा आनन्द आस्था की डुबकी लगायेंगे। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा एवं श्रीपंचदशनाम आवाहन अखाड़ा तथा श्री पंचाग्नि अखाड़ा के लिये आठ बजे का समय निर्धारित किया गया है।
श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा
बैरागी अखाड़ों में अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा का अमृत स्नान का कार्यक्रम 10:40 बजे निर्धारित किय गया है जबकि 11 बजकर 20 मिनट पर अखिल भारतीय श्री पंच दिगम्बर अनी अखाड़ा के साधु अमृत स्नान करेंगे वहीं अखिल भारतीय श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा 12:20 बजे आस्था की डुबकी लगायेगी। उदासीन अखाड़ों का अमृत स्नान के कार्यक्रम सवा एक बजे से शुरु होंगे जिसमें सबसे पहले श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा संगम स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा। श्री पंचायती अखाड़ा, बझ उदासीन, निर्वाण 14:20 बजे और श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा 15:40 बजे से अमृत स्नान करेगा।
सोशल मीडिया पर नंबर वन ट्रेंड बना हैशटैग
महाकुम्भ नगर, 13 जनवरी (वार्ता) प्रधानमंी नरेंद्र मोदी और मुख्यमंी योगी आदित्यनाथ ने तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ को ‘एकता का महाकुम्भ’ करार दिया है।
श्री मोदी और मुख्यमंी योगी आदित्यनाथ के इस कथन को सोशल मीडिया में भी खूब सराहा जा रहा है। सोमवार को महाकुम्भ के पहले दिन पौष पूर्णिमा स्नान पर्व पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एकता का महाकुम्भ हैशटैग टॉप ट्रेंड में शुमार हो गया। सोमवार की सुबह से ही लोगों ने एक्स पर झएकताट्ठकाट्ठमहाकुम्भ को लेकर अपने विचार प्रकट करने शुरू कर दिए और देखते ही देखते पहले यह हैशटैग टॉप ट्रेंड्स में शुमार हुआ और दोपहर को नंबर वन पर ट्रेंड करने लगा।
पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ शुरू हुए महाकुम्भ को लेकर सुबह से ही सोशल मीडिया पर चर्चाएं शुरू हो गई थीं। बड़ी संख्या में यूजर्स महाकुम्भ के वीडियोज, फोटोज और सूचनाएं अन्य लोगों तक पहुंचा रहे थे। यूजर्स कई हैशटैग के जरिए महाकुम्भ पर चर्चा कर रहे थे, जिसमें झएकताट्ठकाट्ठमहाकुम्भ भी एक था। हालांकि, देखते ही देखते यह हैशटैग सबकी पसंद बन गया और शाम साढ़े तीन बजे तक करीब 70 हजार यूजर्स ने इस हैशटैग का उपयोग करते हुए महाकुम्भ में भारी भीड़, संगम स्नान और सनातन आस्था को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी। प्रतिक्रिया देने वालों में मुख्यमंी योगी आदित्यनाथ भी सम्मिलित रहे। सीएम योगी द्वारा हैशटैग का उपयोग करने के बाद इस पर प्रतिक्रिया देने वालों की बाढ़ आ गई और देखते ही देखते यह हैशटैग नंबर वन पर पहुंच गया।
अमेठी की पूर्व सांसद और भाजपा नेता स्मृति ईरानी,भारत सरकार के हैंडल माईजीओवीइंडिया,नमामि गंगे, गोरखपुर के सांसद रवि किशन, यूपी के कृषि मंी सूर्य प्रताप शाही, संदीप सिंह समेत प्रमुख लोगो और संस्थाओं की ओर से भी इस हैशटैग का उपयोग किया गया।
श्री योगी ने हाल ही में पाकार सम्मेलन में कहा था कि जो लोग सनातन आस्था का सम्मान नहीं करते हैं, उन्हें महाकुम्भ में आकर देखना चाहिए कि यहां पंत, जाति और संप्रदाय का कोई भेदभाव नहीं है। यहां सब एक हैं और सब सनातन हैं।
माघ मास में दो चक्र में लोग कल्पवास करते हैं
धर्म संघ अध्यक्ष एवं तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल ने बताया कि माघ मास में दो चक्र में लोग कल्पवास करते हैं। पहले खंड में मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की मकर संक्रांति तक मैथिल ब्राह्मण कल्पवास करते हैं। दूसरे खण्ड पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक साधु-संत एवं बड़ी संख्या में गृहस्थ कल्पवास करते हैं। उन्होंने बताया कि गृहस्थ कल्पवासी गंगा के तीरे विस्तीर्ण रेती पर भैतिक सुख का त्यागकर आध्यात्म में लीन होकर काया शोधन का एक माह तक कल्वास करेंगे। तड़के गंगा स्नान कर अपने-अपने शिवरो में भगवान की पूजा, भजन करने के साथ साधु संतो के प्रवचन का श्रवण करेंगे। इस दौरान कल्पवासी भौतिक सुख का त्याग कर सात्विक जीवन जीने का निर्वहन करेंगे। श्री पालीवाल ने बताया कि महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में मकर संक्रांति की महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा है कि माघ मकर गति रवि जब होई। तीरथ पति¨ह आवै सब कोई, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी। सादर मज्ज¨ह सकलािवेणी। पूजहि माधव पद जल जाता। परसि अखय वटु हरषहि गाता। उन्होंने बताया कि तुलसीदास ने इस दोहे केारिए समझाया है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब प्रयाग मेांिवेणी स्नान करना बहुत पुण्यदायी होता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा, यमुना, और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते हैं। श्री पालीवाल ने कहा कि पुराणों और धर्मशासों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियांण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगा स्नान, ध्यान एवं दान करके कल्पवास करना चाहिए तथा अपने को लोकाचार से दूर रखना चाहिए। तीर्थ पुरोहित ने बताया कि आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौरतरीक में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। आज भी श्रद्धालु भयंकर सर्दी में कम से कम संसाधनों की मदद लेकर कल्पवास करते हैं। श्री पालीवाल ने बताया कि भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूा में पिरोने वाला महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। इस मेले में सनातन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।बताया कि पौष कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि संसारी मोहमाया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियांण कठिन माना जाता है। माघ मेला, कुंभ, और महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसके लिए किसी प्रकार का न/न तो प्रचार किया जाता है और न ही इसमें आने के लिए लोगों से मिन्नतें की जाती हैं। तिथियों के पंचांग की एक तारीख पर करोड़ों लोगों पुण्य के पविा अवसर पर दूर दराज से पहुंचकर तीर्थराज प्रयाग में पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाते हैं। धर्म संघ अध्यक्ष ने बताया कि प्रयागराज में जब बस्ती नहीं थी, तब संगम के आस-पास घोर जंगल था। जंगल में अनेक ऋषि-मुनि जप तप करते थे। उन लोगों ने ही गृहस्थों को अपने सानिध्य मे ज्ञानार्जन एवं पुण्यार्जन करने के लिये अल्पकाल के लिए कल्पवास का विधान बनाया था। उन्होंने बताया कि ऋषियों के इसी योजना के अनुसार अनेक धार्मिक गृहस्थ ज्ञारह महीने तक अपनी गृहस्थी की व्यवस्था करने के बाद एक महीने के लिए संगम तट पर ऋषियों, मुनियों और संतो के सानिध्य में जप तप साधना आदि के द्वारा पुण्यार्जन करते थे। यही परंपरा कल्पवास के रूप मे विद्यमान है। उन्होने बताया कि कल्पवास शुरू करने से पहले शिविर के मुहाने पर कल्पवासी परिवार की समृद्धि के लिए जौ का बिरवा रोपते हैं, तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर नित्य पूजा करते हैं। कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और शेष को अपने साथ ले जाते हैं। संगम क्षेा में एक माह तक जो भी आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव मिलता है, उसका वर्णन नहीं जा किया जा सकता। केवल महसूस किया जाता है।
श्री पालीवाल ने बताया कि कल्पवास करने का कोई निर्धारित समय नहीं होता। उन्होंने बताया कि विधान के अनुसार एक राि, तीन राि, तीन महीना, छह महीना, छह वषर्, 12 वर्ष या जीवभर कल्पवास किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि आकाश तथा स्वर्ग में जो देवता हैं, वे भूमि पर जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि दुर्लभ मनुष्य का जन्म पाकर प्रयाग क्षेा में कल्पवास करें।
input : Varta : दिनेश प्रदीप