Koshyari : Loksabha लोकसभा अध्यक्ष Om Birla ओम बिरला ने उत्तराखंड Uttarakhand के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के जीवन और संघर्ष को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि उनके योगदान से आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन मिलेगा। यह बयान ओम बिरला ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में आयोजित ज्ञानपथ श्रृंखला के तहत आयोजित एक कार्यक्रम में दिया।
इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ने ‘पर्वत शिरोमणि भगत सिंह कोश्यारी’ नामक पुस्तक का विमोचन किया, जो भगत सिंह कोश्यारी के जीवन और उनके योगदान को विस्तार से उजागर करती है। इस पुस्तक का लेखन प्रसिद्ध पत्रकार मदन मोहन सती ने किया है।

संघर्ष और साधना का प्रतीक भगत सिंह कोश्यारी
लोकसभा अध्यक्ष ने कोश्यारी की सादगी और कर्मठता की सराहना करते हुए कहा कि कोश्यारी का जीवन समर्पण और संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “भगत सिंह कोश्यारी राजनीतिक संत हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन उत्तराखंड और देश की सेवा में समर्पित किया। उनके द्वारा किया गया संघर्ष हमारे देश की राजनीति का एक अद्भुत उदाहरण है।”
बिरला ने कोश्यारी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति में उनके योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि श्री कोश्यारी का जनहित और समाज कल्याण के प्रति दृष्टिकोण हमेशा प्रेरणादायक रहा है। वह हमेशा साधारण जीवनशैली में विश्वास रखते थे और जनता के बीच रहना पसंद करते थे।
गंगा के बारे में कोश्यारी का दृष्टिकोण
इस अवसर पर भगत सिंह कोश्यारी ने अपनी यात्रा और संघर्ष के बारे में भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने टिहरी बांध निर्माण के संदर्भ में कहा कि उन्होंने कभी भी प्रचार की परवाह नहीं की और जीवनभर सिर्फ राष्ट्र और समाज के कल्याण के लिए काम किया।

कोश्यारी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “जब मैंने टिहरी बांध में Ganga गंगा नदी को रोकने का निर्णय लिया, तो मेरे खिलाफ कई विरोध आए, विशेषकर संघ और भाजपा के लोगों द्वारा। लेकिन मैंने यह निर्णय लिया कि अगर 7000 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी बांध नहीं भरता, तो यह और बड़ी गलती होगी।” उन्होंने कहा कि इस निर्णय के बाद उन्हें शाप लगा और वह दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन उन्हें खुशी है कि आज लाखों लोग टिहरी बांध से मिलने वाली बिजली और पानी से लाभान्वित हो रहे हैं।
पुस्तक: प्रेरणा का स्रोत
मदन मोहन सती द्वारा लिखित यह पुस्तक भगत सिंह कोश्यारी के संघर्ष, आदर्श और समाज के लिए उनके योगदान को विस्तार से प्रस्तुत करती है। पत्रकार सती ने पुस्तक में कोश्यारी के सार्वजनिक जीवन, समाज सेवा, राजनीतिक योगदान और विचारधारा को रेखांकित किया है।

उन्होंने बताया कि यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक ग्रंथ के रूप में कार्य करेगी, जो उन्हें समाज की भलाई के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देगी।
जुड़ाव और मार्गदर्शन
दिल्ली विधानसभा के उपाध्यक्ष मोहन सिंह विष्ट ने भी इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की और भगत सिंह कोश्यारी से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने कहा कि कोश्यारी से उन्होंने संघर्ष करना सीखा और यही कारण था कि वह मुस्तफाबाद जैसी कठिन सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे।
इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के विधायक किशोर उपाध्यक्ष, सुरेश गरिया, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजयेंद्र अजय, प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी समेत कई अन्य गणमान्य लोग भी शामिल हुए।
भगत दा को गंगा का शाप लगा:

किशोर उपाध्याय ने कहा कि भगत सिंह कोश्यारी ने हमेशा मार्ग निर्देशन किया , लेकिन टिहरी बांध में गंगा को रोककर उन्होंने पाप किया। इस पाप के कारण वह दोवारा मुख्यमंत्री नहीं बन सके। उन्होंने कहा कि वह हमेशा से बांध के विरोधी थे।
निष्कर्ष
भगत सिंह कोश्यारी का जीवन एक संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। उनकी कहानी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। टिहरी बांध और गंगा नदी के मुद्दे पर उनके दृष्टिकोण से यह साफ है कि राष्ट्रहित के लिए कठिन निर्णय लेना कभी आसान नहीं होता, लेकिन सही मार्ग पर चलने का परिणाम हमेशा सुखद होता है।
यह पुस्तक न केवल उनके जीवन के संघर्ष को उजागर करती है, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक अनमोल धरोहर बनकर रहेगी।