net zero carbon emissions : पाँच हज़ार ग़ैर अधिसूचित शहर जीरो कार्बन उत्सर्जन में बड़ा रोड़ा

net zero carbon emissions : भारत में कम से कम 5000 शहर ऐसे हैं, जिन्हें अब तक नगर के रूप में सरकार द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है। यह स्थिति देश के नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में एक बड़ी बाधा बन रही है। नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का मतलब है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन शून्य तक लाना। यह लक्ष्य भारत और पूरी दुनिया को साल 2050 तक हासिल करना है। यह पर्यावरण और जलवायु परिवतन Environment , climate change के लिए खतरा है .

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उपायों को लागू करने की गति धीमी

हालांकि, भारत में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है और वाहनों, कृषि, कूड़े तथा गंदे पानी से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, इन सबके बावजूद नए शहरों को अधिसूचित करने और उनमें कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उपायों को लागू करने की गति धीमी है।

यह निष्कर्ष गुरुग्राम में हुई एक संगोष्ठी में सामने आया, जिसका आयोजन ग्लोबल एसोसिएशन फॉर कॉर्पोरेट सर्विसेज (जीएसीएस) की सदारत में किया गया था। इस कार्यक्रम में पर्यावरण और शहरी विकास से जुड़े विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए।


विशेषज्ञों की राय

राजीव नेहरू (टेरी) ने कहा कि हर नागरिक को प्रदूषण नियंत्रण प्रक्रिया में शामिल किए बिना नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना असंभव है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जनभागीदारी इस मुहिम की सफलता की कुंजी है।

संजय सेठ (एल एंड टी) ने कहा कि प्रदूषण को सटीक रूप से मापना जरूरी है। उन्होंने बताया कि नई टाउनशिप में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के मानकों और प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में भारी अंतर है। उनके अनुसार, प्लांट 165 लीटर प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से लगाए जाते हैं, जबकि पाइप से उपलब्ध पानी की मात्रा केवल 75 लीटर प्रति व्यक्ति ही है।

प्रवीण भारद्वाज (आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट) ने बताया कि देश में कुल 4900 शहरों को अधिसूचित करके नगरीय मान्यता दी गई है। इन नगरों में नगर पालिका या नगर निगम हैं, जिनमें निर्वाचित जनप्रतिनिधित्व है। इसलिए, इन नगरों में कूड़े के संग्रह और गंदे पानी के निस्तारण जैसी व्यवस्थित प्रक्रियाएं लागू हैं। लेकिन, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे 5000 शहरों को अभी तक नगर के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, जो नेट जीरो लक्ष्य प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।

उन्होंने यह भी बताया कि नेट जीरो की मुहिम में व्यवस्थित नगरों के आसपास उग आई अवैध कॉलोनियों में स्वच्छता संबंधी उपाय लागू करना भी जरूरी है। साथ ही, उन्होंने नगरों में सार्वजनिक परिवहन सुविधा बढ़ाकर निजी वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने पर जोर दिया।


सम्मान और नियुक्ति

कार्यक्रम में दो विशिष्ट महिलाओं, डॉ. अभिलाषा गौड़ और नेहा सेठी को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया। समीर सक्सेना और राहुल लाल ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। इसके अलावा, जीएसीएस ने इससे पहले आयोजित जॉब फेयर में 80 लोगों को नौकरी के नियुक्ति पत्र भी वितरित किए।


निष्कर्ष

नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को न केवल अक्षय ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान देना होगा, बल्कि उन 5000 गैर-अधिसूचित शहरों को भी नगरीय मान्यता देनी होगी। इन शहरों में व्यवस्थित ढंग से कूड़ा प्रबंधन, सीवेज ट्रीटमेंट, और सार्वजनिक परिवहन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना जरूरी है। केवल तभी हम एक स्वच्छ और हरित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।


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