climate change : ganga : गंगा और यमुना हमारी बेटी हैं, जो समाज अपनी बेटियों की रक्षा नहीं कर सकता, उससे ज्यादा नालायक कोईं नही – किशोर उपाध्याय

climate change पूर्व मंत्री,  विधायक और पर्यावरणवादी  किशोर उपाध्याय kishore upadhy का कहना है कि गंगा Ganges और यमुना yamuna हमारी बेटियां हैं, हमारा सबसे पहला काम अपनी बेटियों की रक्षा करना, अगर आप अपनी बेटी की रक्षा नहीं कर सकते हो तो हमारा जैसा नालायक समाज कोई दूसरा नहीं हो सकता. हमारे मन में यह विचार आना चाहिए कि गंगा और यमुना, हम उसके भाई हैं, हमारी बहन है हमारी बेटी है और भाई उसकी रक्षा के लिए अगर आप लोग आगे आते हो तो फिर दुनिया क्या कहेगी.

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climate change सौभाग्य शाली है की उत्तराखंड में पैदा हुए

उत्तराखंड में वैश्विक हिमालय संगठन  द्वारा आयोजित “हिमालय बचाओ, गंगा बचाओ- भविष्य की चुनौतियाँ और हमारी भूमिका” विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री उपाध्याय ने कि हमारा सौभाग्य है कि जो धरती Uttarakhand शंकराचार्य जी को मोक्ष दे सकती है भगवान राम को जो है उनको एक उससे मुक्त कर सकती है तो उसमें हम आप सब लोग पैदा हुए. हमारे जो पित्र देवता रहे होंगे पूर्वज रहे होंगे उन्होने कुछ अच्छे काम किए जो उनका भी जन्म हुआ हमारा भी जन्म यहाँ हुआ.

climate change गंगा बचाना केवल हमारा काम नहीं, ख़त्म हो जाएगी दिल्ली भी होगी

c limate changeगंगा को बचाने के चक्कर में मैं 377 वोटों से चुनाव हार गया था. हमारा जो एक सामाजिक कर्तव्य हमारा अपने प्रदेश के प्रति जो कर्तव्य है मानवता के प्रति जो कर्तव्य है और देश के लिए दुनिया के लिए जो कर्तव्य है उससे हम अपने लाभ हानि से को देख करके पीछे नहीं आ सकते थे. आज जो स्थिति हिमालय की है हमको यह भी नहीं कह रहे कि केवल उत्तराखंड का विषय है एक जो बड़ा सवाल है राष्ट्र का राष्ट्रीय का आज ही मैं देख रहा था य जो सिं जी बैठ अभी एक हफ्ते पहले हमने अपने पांच जो वो है सैनिक है उनकी चिता को आग लगाई है ना तो इस देश को बचाने का जो सबसे बड़ा दायित्व जो हम लोगों पर है, मैं ये नहीं कहता कि हम लोगों का कोई योगदान नहीं है उसमें लेकिन पहली बूंद अगर रक्त की गिरती है तो वो हमारा उत्तराखंड का जवान होता है कि नहीं होता ठीक तो अगर भारत ही नहीं रहेगा तो फिर जो है आज अगर हम शांति से यहां बैठक कर रहे हैं.

वेनेजुएला के ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं

climate change जो असर पड़ेगा हिमालय के पिघलने का जो पड़ रहा है अभी आप लोगों को जानकारी होगी अब वेनेजुएला के जो ग्लेशियर्स है वो तो इस साल खत्म हो जाएंगे तो अगर हिमालय के ग्लेशियर्स खत्म हुए तो क्या दिल्ली में जो लोग है क्या वह बच जाएंगे क्या तो मुझे जब उस समय डाटा तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड आंदोलन में जो है उसको शुरू करवाने में उसम जुड़ने में मैंने कहा हम अपने लिए चाते हम उत्तराखंड के लोग तो बहुत विशाल हृदय के लोग हैं मैंने कहा अपने लिए नहीं आप यहां दिल्ली में जिंदा रह सको तो इसलिए जो है हम चाहते हैं कि उसका नियोजन ठीक होना चाहिए.

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मध्य हिमालय के लिए कोई मॉडल आपके पास नहीं है

 आज तक सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि मध्य हिमालय के लिए कोई मॉडल आपके पास नहीं है कि उसका डेवलपमेंट कैसे हो अगर कोई है तो आप बता दो कोई मॉड्यूल नहीं है हमने कोशिश की थी उस समय प्रण मुखर्जी जी के साथ मिलकर के मॉड्यूल कोई बनना चाहिए नहीं बना हिमालय हमारे देश को हर क्षेत्र में संपन्न कर सकता है वो वातावरण हम कैसे बनाए जब मनर भाई ने जिक्र किया मुझसे की अक्षर के जो हमारे शे जो भी वहां पर लोग है स्वामी जी है और आपका उनके साथ बड़ा अच्छा संपर्क है तो अल्टीमेटली निर्णय किसने लेना है निर्णय तो जो है जो सत्ता में है हमारे प्रधानमंत्री जी है हमारे मुख्यमंत्री जी वही लेंगे ना आप और हम तो नहीं ले सकते हैं.

तरीका ढूँढना होगा

 मैंने इनसे ये कहा था कि मैंने कहा कोई तरीका ऐसा ढूंढो भाई कि ये सारी चीजें मिलने के लिए मैं भी मिल सकता हूं कोई समस्या थोड़ी है मिले भी है कई बार लेकिन कोई आदमी मुझे ऐसा चाहिए जैसे चांगकी के वो था ना चंद्रगुप्त कोई चंद्रगुप्त नहीं मिल रहा है इतने सारे लोग दिल्ली में और हमारी सबसे बड़ी भूमिका है जो दिल्ली में हम लोग रह रहे हैं मैं भी तो दिल्ली काफी रहा. हम लोगों को कोई ऐसा एक ना है चाणक्य  के जो की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके मैं सब मंत्रियों से मिल लिया हवान में हमारे सारे संत है उनको मिल लिया तो मैंने यह कहा था,

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गंगा बचाओ विचार गोष्ठी में अपन विचार रखने पर्यावरण वादी

हिमालय खतरे में है

मैंने आप बात करो जो गंभीरता से यह बात कर ले कि हिमालय खतरे में है आपको सब कुछ वहा से मिला है और अगर आप इसको करोगे तो देश को सबसे बड़ा फायदा हो अगर हमारे प्रधानमंत्री जी सिंगापुर के प्रधानमंत्री से बात करें कि भी हमें कुछ नहीं चाहिए हमको कि से कोई भिा नहीं चाहिए तुझे अपने को बचाना है तो पहले हिमालय को बचाने के लिए उसम मदद कर आपका जो साउथ कोरिया है या नॉर्थ कोरिया जहां से अभी आपकी गाड़ियों में व छोटा सा कोई वो लगता है कंपोनेंट लगता है वो नहीं आया तो य सारी की सारी गाड़िया है ड़ गई पड़ नहीं प कह सकते हैं कि जिंदा रहना है

हिमालय हमारे उसमें थोड़ी है

 तो पहले हिमालय के लिए कुछ करो उसको बचाओ केवल हमारे नहीं है मुझे चिंता दूसरी है दूसरी चिंता यह है कि अगर हमने इस मामले को नहीं उठाया ना तो केवल हिमालय हमारे उसमें थोड़ी है मैं इसमें अभी देख रहा था आपका जो है ये आपका भारत हुआ आपका चीन हुआ भूटान हुआ नेपाल हुआ पाकिस्तान पाकिस्तान अफगानिस्तान से लेकर तो कोई दूसरा देश उठा लेगा तो फिर आप उसके पीछे इसलिए दिल्ली वालों की य महत्वपूर्ण भूमिका है कि हम उस वातावरण को उस बात को हम प्रधानमंत्री जी को कैसे तैयार करें उसके लिए कि आप इस एजेंडे को जो आप उठाने का काम करो उससे हमारी जो है ना यह आसान हो जाएगा जो हमारा उत्तराखंड की जो समस्या है उनके समाधान का जो है वो आसान हो तो आप लोग उस पर विचार करो ना कैसे कर सकते.

25 साल के मौके पर योजना बनाये

 आपने बहुत सी बातें उत्तराखंड के बारे में की मन की बात की आपने उसका नियोजन की बात की उसके लिए तो 25 साल होने जा रहे हैं मेरी चिंता है मेरी चिंता क्या है , उतराखंड आंदोलन में तो उस राज्य बनने का कोई फायदा नहीं है ना 25 सालों में अगर हम उन्ही सवालों से जूझ रहे हैं जो सवाल जो है वो 2000 में थे. तो ये जो हिमालय का विषय है गंगा का विषय तो हमने इसलिए जोड़ दिया कि हम सनातन धर्मी है

हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी

 इसलिए गंगा को भी इसम हिमालय नहीं रहेगा तो गंगा भी नहीं रहेगी तो मैंने कहा उसम हम अगली जो आने वाली बीवी है जैसे बी ने कहा साब वो तो हिमालय में बचना ही नहीं है हिमालय क्यों नहीं ब बच सकता है हमने तो उसको खराब किया है किसी दूसरे ने तो किया नहीं गाड़िया कौन लाए हम लोग लाए कौन लाए हम लोग लाए ग्लोबल वार्मिंग हो रही है तो हम ही लोग लाए तो एक एक वैश्विक एक अगर हम कुछ बना सके इस तरह का विचार तो उस पर विचार करने के लिए मैंने कहा आप लोग कुछ सुझाव देंगे तो उस पर आगे क्या कुछ र रास्ता निकालेंगे करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे तो बहुत फायदा हो मिनट मन वाला जो हमारे उसके सवाल है उत्तराखंड के 25 साल होने जा रहे हैं जब 18 साल का हुआ था तो मैं तो वहा पर देहरादून में बड़ा भारी कार्यक्रम किया था और उसमें लिखा था उत्तराखंड विमर्श उसका नाम रखा था और क्या खोया क्या पाया उसम मेरे ल से उत्तराखंड का कोई ऐसा संगठन नहीं था जो शामिल नहीं हुआ तो आज 25 साल होने जा रहे हैं हम दिल्ली में इस तरह से कार्यक्रम कर सकते लेकिन वो कार्यक्रम रचनात्मक और सकारात्मक हो हम एक दूसरे पर आक्षेप ना लगाए कि ये नहीं हुआ वो नहीं हुआ हम उसका रास्ता बताए.

इस मौके पर उत्तराखंड सरकार के सलाहकार पूरण सिंह नैनवाल ने जलवायु परिवर्तन के कारण बदल रही परिस्थितियों के बारे में बयाता.

उत्तराखंड ने अनेक पर्यावरण प्रेमियों ने अपने विचार रखे.

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