Delhi Election : दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे रेवड़ी संस्कृति की प्रासंगिकता को लेकर विमर्श भी जारी है। वास्तव में यह चर्चा कोई नई बात नहीं है। देश में जब जब चुनाव आता है, रेवड़ी संस्कृति की चर्चा भी अपना स्थान ले लेती है। रेवड़ी संस्कृति को एक तरफ राजनीतिक दल एक प्रभावी उपकरण के रूप में देखते हैं, तो दूसरी ओर इसे लेकर देश के आर्थिक सेहत की बात भी की जाती है। ऐसे में इसके दोनों पक्षों पर बात होनी चाहिए।
also read : Delhi Elections : दिल्ली विधानसभा चुनाव : एक त्रिकोणीय किंतु रोचक मुकाबला
Delhi Election रेवड़ी संस्कृति क्या है ?
रेवड़ी संस्कृति के तहत चुनाव में जनता को प्रभावित करने के लिए मुफ़्त वाले बहुत से वादे किए जाते हैं। लेकिन चुनाव के बाद इन वादों को लागू करने पर अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । बेशक, इन वादों के कारण जनता के मतदान व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। साथ ही राजनीतिक दलों को चुनाव में इसका लाभ भी मिलता है। लेकिन इस संस्कृति के कारण बजट इन मुफ़्त की योजनाओं में खर्च हो जाता है, इस कारण घाटा बढ़ता जाता है।
रेवड़ी संस्कृति और मतदान व्यवहार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि रेवड़ी संस्कृति के कारण चुनाव में लोग राजनीतिक दलों से प्रभवित होते हैं। साथ ही राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान व्यवहार को बढ़ावा मिलता है। आज कल इसे एक प्रभावी चुनावी उपकरण के रूप में देखा जा रहा है। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी तरफ से जनता के बीच में अपनी घोषणाओं को रखते हैं। हां यह जरूरी नहीं की हर बार इस तरह की घोषणा से राजनीतिक दल को लाभ ही मिले, कई बार जनता इसको नकार भी देती है।
जनकल्याणकारी योजना और लोकलुभावन योजना
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत भारत एक लोककल्याणकारी राज्य है, जिसका तात्पर्य ऐसी सरकार से है जो समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े रूप से लोगों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करती है। दूसरा, किसी भी राज्य में इन योजनाओं से व्यक्ति मानव संसाधन में रूपांतरित भी होता है। ऐसे में सरकार लोककल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ाने के प्रयास करती है। दूसरी ओर लोकलुभावन योजनाओं के कारण देश के आर्थिक सेहत पर प्रभाव भी पड़ता है।
नियंत्रण लगाना चाहिए
इस प्रकार, रेवड़ी संस्कृति राजनीतिक दलों के लिए एक उपयोगी चुनावी उपकरण के रूप में विद्यमान है।लेकिन आदर्श परिस्थिति तो वही होगी जब जनता खुद रेवड़ी संस्कृति को ना कहे । दूसरी ओर निर्वाचन आयोग और न्यायलय को भी एक सीमा के बाद इस पर नियंत्रण लगाना चाहिए। आज के दौर में हमारी पहली प्राथमिकता समावेशी विकास के साथ साथ राष्ट्र का आर्थिक सेहत भी मजबूत होना चाहिए।
