
Delimitation या परिसीमन लोकसभा और असेंबली की सीट का परिसीमन होता है वह पॉपुलेशन और फिर उसके बेसिस पर जो है उसमें प्रत्येक लोकसभा और प्रत्येक विधानसभा की टेरिटोरियल के बेसिस पर उनकी सीट निर्धारित होती है और यह संविधान के आर्टिकल 82 और 170 के अधीन होता है. पर मैं इसमें एक राष्ट्रीय डिबेट के रूप में इसको उठाना चाहता हूं सर्वप्रथम तो मैं यह देख रहा हूं कि अभी जो परिसीमन की जो बातें हो रही है उसमें अभी आप देखिए कि चंद्र बाबू नायडू और तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर स्टालिन ने कहा है कि ज्यादा बच्चे पैदा होने चाहिए.
Delimitation 1971 की जनगणना के आधार पर हुआ परिसीमन
उसका रीजन यह है कि डीलिमिटेशन जो है कि ये पॉपुलेशन census के बेसिस पर होता है और क्योंकि पॉपुलेशन के बेसिस पर अब आप देखिए सन 1971 में इसको फ्रीज कर दिया गया था कि डीलिमिटेशन जो है जो उसको फ्रीज कर दिया गया था कि उन्हीं सन 71 के बेसिस पर जो सीटें हैं उसी के बेसिस पर होगा लोकसभा की 543 सीट थी पर अगर आप देखें पिछली बार 1971 में जब हुआ था तो भारत की जनसंख्या थी अराउंड 58 करोड़ कुछ थी और उससे पहले जब 61 में हुआ था तो 39 करोड़ थी और उस समय सीटें 522 थी फिर 543 हो गई . अब क्या है अब अब ये यह चर्चाएं चल रही है कि 835 सीटें हो जाएंगे.
दक्षिण में जनसँख्या नियंत्रण का खामियाजा
पर आप देखिए उसमें क्या हो रहा है जो साउथ की सभी स्टेट आंध्र प्रदेश है, कर्नाटक, केरल,तमिलनाडु है इन्होंने फैमिली प्लानिंग जो भारत सरकार का पॉपुलेशन कंट्रोल का जो प्रोग्राम था उसमें बहुत अच्छा कार्य करते हुए उन्होंने अच्छा किया है और उसके उसके इतर आप देखिए उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान इनमें पॉपुलेशन इनकी सीटें बढ़ने की संभावना है क कन्ने पॉपुलेशन में ज्यादा कंट्रोल नहीं किया उसी प्रकार से उत्तराखंड का जो परिपेक्ष है मैं ज्यादातर उसम भी बोलना चाहूंगा उसकी सीटें भी पांच में से तीन होने की संभावना है क्योंकि अगर आप पॉपुलेशन के बेसिस पर करोगे तो उत्तराखंड, हिमाचल, नॉर्थ ईस्ट इन सब की सीटें कम होगी.
2004 में वाजपयी सरकार ने जनसख्या के आधार पर परिसीमन का फैसला कियिया था
2004 में अटल बिहारी वाजपेई ने लिया था क्योंकि उससे पहले तो भौगोलिक आधार पर था लेकिन 2004 में जब उन्होंने संविधान संशोधन किया तो उन्होंने कहा कि क्योंकि लोग शहर में आ रहे हैं शहरीकरण हो रहा है तो उसको जनसंख्या जहां ज्यादा होगी वहां ज्यादा सीटें होनी चाहिए तो हालांकि उसमें हमने भी इसमें अरुण जेटली लॉ मिनिस्टर थे तो उसमें उनसे बहुत बहस हुई थी हमने भी कहा था कि आप ऐसा मत करिए ये देश हित में नहीं होगा और सीमाओं के लिए बड़ा खतरा हो जाए .
दिल्ली में सात सीटें हैं और उत्तराखंड में पांच सीटें हैं- क्यों ?
आज जो है सिस्टम देखिए ये पहले भी देखिए पहले भी देखो अब इसका मुझे एक औचित्य नहीं आता है सन 47 में जब सन 52 में जब पहला संविधान हुआ दिल्ली में या उसके बाद जो भी हुआ दिल्ली में सात सीटें हैं और उत्तराखंड Uttarakhand में पांच सीटें हैं कितना बड़ा भौगोलिक स्ट्रक्चर है उत्तराखंड का और दिल्ली में सात सीटिंग का कोई औचित्य नहीं बनता है तो इसका राशनलाइजेशन जो है होना चाहिए.
परिसीमन को स्थगित करना चाहिए
इसको जो Delimitation है उसकी जो प्रोसेस है उसको सरकार को उसको या तो पोस्टपोन कर देना चाहिए या इसको कैप कर देना चाहिए जैसे कि आप देखो अमेरिका में उन्होंने कैप कर दिया है अब वो क्या करते हैं स्टेट में रिलेटिवली वो पॉपुलेशन के बेसिस पर इधर उधर खिसका रहते हैं हा पर स्टेट की संख्या से र सेम रहती है अच्छा पर होना क्या चाहिए .
उत्तराखंड में पहाड़ की सीटें कम हो जाएँगी
भारतवर्ष में जो जैसे मैं आप उत्तराखंड की बात करता हूं उत्तराखंड में क्या हो रहा है जो जो प्लान हो रहा है वहां पे और बाहर से भी इनफ्लक्स हो तो जो हमारी जो सीटें हैं स्पेशली जो विधानसभा की सीटें हैं वो पिछली बार 70 में से चार सीटें कम हो गई ठीक है क्योंकि प्लान हुआ लोग भाग शहरों में आ रहे हैं और दूसरे बाहर से पॉपुलेशन भी आ रही है तो प हो अबकी बार सात आठ सीटें कम होने वाली है और वो भी हिल्स स्टेट की तो तो फिर पड़ है वहां से कम हो जाएंगे और वो शहरों की तरफ जहां पॉपुलेशन बढ़ है तो उत्तराखंड बनने का क्या मतलब हुआ हम भाई आपने यह कहा था कि हिल्स का कल्चर डिफरेंट होता है उनकी उनकी जो है आवश्यकताएं डिफरेंट होती हैं उनका कल्चर डिफरेंट है तो उसके लिए एक राज्य बनाओ.
उत्तराखंड उत्तर प्रदेश में रहता तो ज्यादा खुशाल रहता
अब वो राज्य तो मुझे लगता है कि उत्तराखंड जो है उत्तर प्रदेश में रहता तो ज्यादा खुशाल रहता समस्त जो आज हम देख रहे हैं वहां का जो विकास है वह है तो इस लिहा से जो आज के डेट में उत्तराखंड के परिपेक्ष में मैं कहूंगा कोई भी राजनीतिक पार्टी जो राष्ट्रीय पार्टी है इनका ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा है और हमारी जनता का भी ध्यान नहीं जा रहा है
तो इसलिए राष्ट्रीय परिपेक्ष में भारत सरकार को परिसीमन Delimitation को इसको बिल्कुल या तो 50 साल के लिए स्थगित कर देना चाहिए और दूसरा जो है क्षेत्रीय आधार पर भी इसका एक बहुत महत्त्वपूर्ण 70 पर जो है क्षेत्र के लिहाज से होना चाहिए पॉपुलेशन तो धीरे-धीरे हमको पॉपुलेशन तो कंट्रोल करनी पड़ेगी जैसे अ हा जैसे संविधान में तो जब आप एक एक constituancy को जब आप लिमिट करते हो बनाते हो तो उसको पॉपुलेशन बेसिस पर करते हो पहले पर साथ में उसकी क्षेत्र भी तो देखते हो.
संविधान में संशोधन करके क्षेत्रीय आधार पर
देख अब उत्तराखंड देखो हमेशा से टिहरी कहो चमोली कहो पिथोरागढ़ कहो सीमांत क्षेत्र है, इतने बड़े भौगोलिक क्षेत्र है उसका तो एमपी कहीं जा ही नहीं सकता है और फिर जो वहां जो जो जो वहां जनसंख्या बच जाएगी उनको लगेगा कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है तो रहा अनय तो हो ही रहा है तो अब आप देखिए जैसे मैं तो देखता हूं दिल्ली है दिल्ली में तो एक एक दिन में आप सार दिल्ली घूम जाओगे टिहरी में चले जाओ पौड़ी में चले जाओ पिथोरागढ़ को सबके साथ डिबेट करके और संविधान में संशोधन करके क्षेत्रीय आधार पर
जो है मुद्दा अब परिसीमनDelimitation का होना चाहिए और जब तक यह नहीं होता है 2026 में जो होना है अभी 2021 की तो जनसंख्या वो सेंसस हुई नहीं है शुरू नहीं हुई अच्छा माना अगर अभी भारत सरकार कुछ अगर इसमें स्टेब ले रही है तो 2026 के बाद अब हमको यह देखना है कि पॉपुलेशन कंट्रोल शुड बी द बिगेस्ट एफर्ट ऑफ द गवर्नमेंट कि जब तक पॉपुलेशन कंट्रोल नहीं होगा
संसाधनों पर ज्यादा दवाब बढ़ रहा है
इस देश के संसाधन पर इतना ज्यादा तनाव हो रहा है कि आपको कॉन्फ्लेट सोसाइटी में बढ़ेंगे ही बकुल तो इसलिए एक तो परिसीमन हमारे देश की सुरक्षा के लिए हमारे देश में सांस्कृतिक अखंडता को बनाए रखने के लिए और समाज में ससता को बनाए रखने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि परिसीमन को स्थगित कर दिया जाए आप सीटें बढ़ सकते हैं जैसे अभी क्या हो रहा है कि महिलाओं को देने की हो रही है उसमें 2029 के इलेक्शन से महिलाओं को होगा तो उसमें ये है कि भाई हर एक कांशन में मतलब जैसे अभी 543 है तो 800 हो जाएंगी उसमें कुछ 300 महिलाए भी आ सकती है तो इसलिए सीटों को तो इसको बिल्कुल फ्रीज
कर देना चाहिए .
उत्तराखंड में 14 MP होने चाहिए
स्पेशली जो पहाड़ी इलाका उत्तराखंड में मैं समझता हूं कम से कम हमारे 12 14 ए एमपी के सीट होनी चाहिए अभी पांच है तो आठ अगर वो हो जाए चार महिलाएं हो जाए तो इस तरह से देश में प्रधानमंत्री को यह देखना चाहिए और यह सोचना चाहिए होम मिनिस्टर को और सभी राजनीतिक दलों को और उत्तराखंड में जो राजनीतिक पार्टियां जो सोई हुई हैं उनको मैं यह जगाना चाहता हूं कि अब जनता भी धीरे-धीरे इसमें जागने की कोशिश कर रही है,
29 नवंबर को एक रैली करेंगे
मैंने तो अभी यह कहा है कि हम तो एक 29 तारीख नवंबर को एक रैली करने का विचार है मैं सब उत्तराखंड निवासियों से आवेदन करता हूं प्रार्थना करता हूं कि व अपनी संस्कृति और अपने क्षेत्र के विकास और इसकी अक्षुण होता बनाए रखने के लिए इस रैली में भाग करें ताकि भारत सरकार पर हम जो है एक प्रकार से राजनीति रहित एक ऐसा दबाव बनाए कि जिस तरह से उत्तराखंड बनाया गया था उसी प्रकार से इसकी रक्षा हो और साथ में जो हमारे देश की जो इंटीग्रिटी है वो परिसीमन के विषय में एक विस्तृत चर्चा इस देश राजनीतिक दलों के बीच होनी चाहिए और एक डिसीजन होना चाहिए इसको फ्रीज कर दिया जाए.
महिला आरक्षण से सीटें बढेंगी
2029 में जब महिलाओं के आक्षण की बात आएगी तो सीटें अपने आप जो है हर एक स्टेट में बढ़ जाएंगी अच्छा साब चीज बताइए जो अभी स्टालिन ने बोला है कि जो दक्षिण के लोग हैं वो अपनी जनसंख्या बढ़ाए उसके पीछे क्या तर्क हो सकता है क्योंकि दक्षिण के लोग तो पढ़े लिखे लोग हैं और उन्होंने जनसंख्या भी कंट्रोल की है उन्होंने और उनका जो सामाजिक स्तर है वो भी नॉर्थ के हिसाब से उसके पीछे यह है अ कि देखिए अभी एक सर्कुलेट हो रहा है अगर जनसंख्या के बेसिस पे से 2026 में 2025 में अगर भारत सरकार ने सेंसस पूरी कर दी.
परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता
तो 2026 में अगर एसिस्टिंग लॉ के अनुसार और दूसरी बात आपको मैं ये बता रहा हूं जो Delimitation कमीशन बैठने के बाद अगर जो उसने जो ऑर्डर कर दिया तो वो इट कैन नॉट बी चैलेंज इन कोर्ट ऑफ लॉ आप देखिए हां क्योंकि वो संविधान के तहत होगा नहीं नहीं संविधान के संविधान में तो आप सुप्रीम कोर्ट के अंदर पावर है कि वो उसको इंटरप्रेट करे ऑर्डर दे और उसको चैलेंज करें पर डीलिमिटेशन कमीशन को कोई चैलेंज नहीं कर सकता एक बार हो गया तो हो गया .
उत्तर प्रदेश में सीटें बधेंगिम तमिल, आन्ध्र में घटेंगी
आप जब पॉपुलेशन के बेसिस प आप तय करोगे नहीं तो उनकी सीटें कम होगी कम होगी और इधर उत्तर प्रदेश में बढ़ जाएंगी उ उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी बढ़ेगी और उधर उत्तराखंड में भी जो है कुछ सीटें कम हो जाएंगी तो हां अगर कम नहीं हुई तो उतनी ही रहेगी हां तोन जहां पपले ब ब तो साउथ इंडिया वाले जो कह रहे हैं उनके बात में दम है स्टालिन कहे या चंद्रबाबू
नायडू के है पॉपुलेशन के विषय में वो जो कह रहे हैं
तो भारत सरकार को इसको संज्ञान में लेना चाहिए और देश की जो फ्यूचर जो हम कह रहे हैं 2047 में प्रधानमंत्री का अगर है कि इसको विकसित भारत बनाना है तो विकसित भारत के लिए ये राजनीति में जो है इस इस मुद्दे को बहुत सटीक ढंग से उठाना चाहिए और जो हमारे जो राष्ट्रीय दल है स्पेशली उनको इसमें स्पेशली बीजेपी कांग्रेस और इन सबको इसमें जोर शोर से उठाना तो चाहिए लेकिन उसको पब्लिक को भी साथ आना चाहिए क्योंकि अल्टीमेटली पब्लिक के लिए और फिर आप भूस में लाठिया मारोगे उसका कोई काम नहीं चलेगा.
उत्तराखंड की जनता पहले भी सोई हुयी है
लेकिन उत्तराखंड की जनता पहले भी सोई हुई थी जब चार सीटें कम हुई किसी ने कुछ नहीं बोला जो पहाड़ों से नीचे आ ग क्योंकि क्योंकि राष्ट्रीय दलों के वो कंट्रोल करते हैं किसको अध्यक्ष बनाना है किसको टिकट देने है दिल्ली से उनके मुह बंद रहते हैं और अभी सबसे बड़ी बात क्या है आप अंग्रेजी में एक कहावत है द गवर्नमेंट यू डिजर्व यू गेट उत्तराखंड की जनता सोई हुई है इसमें कोई वह नहीं है मैं पिछले 10 साल से देख रहा हूं मैंने एनजीओ भी चलाया मैं राजनीति में केवल इसलिए उतरा हूं कि कुछ इश्यूज को रेज करो कि जो क्षेत्र के और हमारी जनता के इशू है मैंने रेज किए हैं और उसमें इन लोगों ने कुछ एक्शन भी लिए हैं लेकिन जनता जो है वह छोटे मोटे स्वार्थों में घुली हुई है उससे उसे कुछ मतलब इतना ज्यादा विजन अब नहीं रह गया सास्कृतिक का पतन तो हो ही रहा है.
उत्तराखंड की जनता को सोचना पड़ेगा
वह सारे देश की बात है तो उत्तराखंड में तो यह उत्तराखंड की जनता को सोचना पड़ेगा उनको आगे आना चाहिए और मैं तो कहूंगा कि परिसीमन Delimitation को रोकने के लिए दबाव बनाए जाए अपने एमएलएस प ब्लॉक लेविन में मीटिंग हो बीडीसी की मीटिंग में प्रस्ताव पारित किए जाए ग्राम प्रधानों से अनुरोध है कि ग्राम प्रधान से अनुरोध है कि व अपने ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित करके ब्लॉक लेवल में ले जाएं फिर जिला पंचायतों में प्रस्ताव पारित करके फिर इस असेंबली में ले जाएं एमएलए के पास और फिर विधानसभा अध्यक्ष को सारे प्रस्ताव पाठ करके गवर्नमेंट को दिया जाए कि इसको क्षेत्रीय आधार पर जो है स्पेशली उत्तराखंड में तो करना ही चाहिए
देश में भी जो है इसमें एरिया के बेसिस पे इसको पूरा संविधान में संशोधन किया जाए और जैसे मैंने पहले ही कहा था कि इसको फ्रीज कर देना चाहिए और फिर जैसे आप 2019 में महिलाओं का हो रहा है तो वैसे भी बढ़ ही जाएगा हां तो मुझे लगता है कि यह बहुत गंभीर आपने इशू उठाया और ये मुझे लगता है इस पर चर्चा होनी चाहिए और चर्चा अभी से होगी तो तब जाके जब 2026 में 2027 -28 में जब भी सरकार सेंसस पूरी करे और इस पर चर्चा हो तो उससे पहले लोग जागरूक रहे और अपनेअधिकारों के लिए लड़ पाए तो लोगों को तो अभी जागरूक होने चाहिए.
आपने इशू उठाया 2024 में 2026 में बात है तो अभी से लोग तैयारी करें पढ़े लिखें और अपने पेपर प्रेजेंट करें और सरकार को लिख के दे ताकि उनकी जो उनकी जो जो जो क्षेत्रीय एक पहचान होती है उसको मेंटेन करने के लिए वो काम मैं तो आपने बिल्कुल बिल्कुल सही कहा और मैं तो यह कहूंगा कि जो एकेडमिक इंस्टीट्यूशंस है यूनिवर्सिटी हैं उनको इंटेलेक्चुअली इस चीज को बड़े जोर शोर से उठाना चाहिए हमारे नेता उठाए ना उठाएं लेकिन हमारे जो इंटेलेक्चुअल और समाज में जो सोशल वर्कर उनको उठा कर के प्रधानमंत्री पर दबाव डालना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री के के बिना कोई भी चेंज डीलिमिटेशन और परिवन इस देश में होने की संभावना नहीं है इसलिए उन्हीं पर दबाव होना चाहिए