Manmohan Singh : पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह इतिहास बने

manmohan singh पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का आज नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेदसंस्थान एम्स में 92 साल की उम्र में निधन हो गया । वह उम्र संबंधी बीमारियों से ग्रसित थे । उन्होंने रात 9:51 पर अंतिमसांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।

Manmohan Singh 26 सितंबर 1932 को पश्चिमी पंजाब में जन्म

आज के पाकिस्तान जन्मे डॉक्टर मनमोहन सिंह देश के प्रख्यात अर्थशास्त्री रहे।

डॉ मनमोहन सिंह 2004 से लेकर 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे । उनके कार्यकाल में आर्थिक सुधारो का एक बड़ा दूर आया हालांकि उनकी सरकार पर निष्क्रियता का भी आरोप लगा लेकिन वह अपने काम में व्यस्त रहकर देश सेवा में जुड़े रहे। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से लेकर अनेक योजनाएं उनकी देन है।

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डॉ मनमोहन सिंह 1972 से 1976 तक चीफ इकोनामिक एडवाइजर रहे 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे और 1985 से 87 तक प्लानिंग कमीशन के उपाध्यक्ष रहे 1991 में जब देश आर्थिक दुर्गति से जूझ रहा था तब उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया और उन्होंने वहां से उदारीकरण की नीति शुरू की और देश को आगे बढ़ाया।

डॉ मनमोहन सिंह की निधन की खबर आती ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम्स पहुंचे और स्वास्थ्य मंत्री एवं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी एम्स पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देर रात एक से पहुंच सकते हैं राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ समेत विश्व भर के नेताओं ने उनके निधन पर शक व्यक्ति किया है।।

डॉ मनमोहन सिंह अजात शत्रु थे वह मृदु भाषी एवं सरल स्वभाव के थे उन्होंने राजनीति में कभी भी दुश्मन खड़े नहीं किया वह सभी से मिलते थे और अपने सरल स्वभाव के कारण वह सुलभ उपलब्ध भी थे।

अपने जीवन काल में भले ही डॉक्टर मनमोहन सिंह को उतनी पहचान नहीं मिल पाई, जितना कि वह हकदार थे, लेकिन उनके निधन के बाद उनको उपलब्धियां सभी याद कर रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को दिवालियापन से निकालकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। डॉक्टर मनमोहन सिंह जब देश के वित्त मंत्री बने, तब देश पर कर्ज चढ़ा था और देश का सोना गिरवी रखा गया था लेकिन 2014 में जवाब प्रधानमंत्री पद से मुक्त हुए उसे वक्त देश की अर्थव्यवस्था 8% के हिसाब से बढ़ रही थी।

2004 में प्रधानमंत्री बनने की प्रक्रिया से लेकर और 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह को कवर करने का मुझे बहुत नजदीक से मौका मिला। 2004 में जब कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी डॉक्टर मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी को लेकर लगातार बैठकें करती थी और बार-बार राष्ट्रपति भवन जाती थी। जब सोनिया गांधी के नाम पर सहमत नहीं बनी। तब राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने के बाद उन्होंने मीडिया से बात की और कहा कि उन्होंने देश को सुरक्षित हाथों में सौंप दिया है। डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद जब भी कांग्रेस की बैठकें और योजना आयोग की बैठक करते थे तो मीडिया से जरूर मिलते थे और उनका मिलने का तरीका अन्य प्रधानमंत्री उसे भिन्न था। वह सिक्योरिटी को हटाकर मीडिया के बीच आ जाते थे और तसल्ली से बात करते थे। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उनसे इसी तरह से बाइट लेते थे जैसे कि वर्तमान में पॉलिटिकल पार्टियों के छोटे प्रवक्ताओं से । डॉ मनमोहन सिंह कभी भी हिचकते नहीं थे और एक-एक चैनल को बाइट देते थे।

प्रधानमंत्री आवास 7 रेस कोर्स रोड के प्रांगण में अक्सर वह मीडिया वालों को बुलाया करते थे और वहां खुलकर बातें होती थी। हालांकि दूसरे कार्यकाल की आखिरी वर्षों में नौकरशाही के दबाव में उन्होंने 7 आरसीआर के अंदर पत्रकारों से मिलना बंद कर दिया था ।

लेकिन वह संपादकों से नियमित तौर पर मिलते थे और हर वर्ष प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह किसी भी सवाल से बचते नहीं थे बल्कि जवाब देते थे। आज पूरी मीडिया बिरादरी डॉ मनमोहन सिंह के युग को याद करती है और उनके समय हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस हो और मीडिया से इंटरेक्शन के उदाहरण देता है।

लोकसभा या राज्यसभा में जब भी बीजेपी के नेता उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री कहते थे तो वह मुस्कुराकर और विद्वान की तरह जवाब देकर मामले को टाल देते थे। उन्होंने कभी भी ऐसी वाणी नहीं बोली जिससे किसी को दुख हुआ हो।

एक समय ऐसा भी आया जब सोने गांधी की अध्यक्षता वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के बीच उनके काफी मतभेद हो गए थे सोनिया गांधी के नजदीकी मंत्री उन्हें कमतर आंकते थे लेकिन वह किसी प्रवाह के किए बगैर, नौकरशाही और अपने नजदीकी मंत्रियों के साथ मिलकर काम करते रहते थे। मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून और भूमि अधिकरण कानून जैसे बड़े क्रांतिकारी फैसला उन्होंने लिए।

एक वक्त ऐसा भी आया जब अमेरिका से न्यूक्लियर डील न करने को लेकर विपक्ष और कांग्रेस ने उन पर दबाव बनाया था लेकिन उन्होंने साफ कह दिया था की या तो न्यूक्लियर डील पर साइन होंगे या वह इस्तीफा देंगे। फिर कांग्रेस को उनकी बात माननी पड़ी और डील फाइनल हुई।

लोकसभा में दिवंगत सुषमा स्वराज ने एक शेर कहकर डॉक्टर मनमोहन सिंह पर हमला किया था कि “तू इधर-उधर की बात मत कर, ये बता कि कारवां क्यों लुटा। “

इस पर डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इकबाल सिंह का मशहूर शेर पढ़ा “ माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं , तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।

डॉ मनमोहन सिंह सरकार पर अनेक भ्रष्टाचार के आरोप लगे लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनपा पर एक भी आरोप नहीं लगा। सत्ता के दो केंद्र होने के बावजूद भी उन्होंने 10 साल देश का कुशल नेतृत्व किया।

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