makar sankranti : भारत देश में हर साल 2000 से अधिक त्यौहार मनाये जाते है ! इन सभी त्योहारों के पीछे महज सिर्फ परंपरा या रूढि बातें नहीं होती है, हर एक त्यौहार के पीछे छुपी होती है ज्ञान, विज्ञान, कुदरत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी तमाम बातें ! हर साल 14 जनवरी को हिन्दूओं द्वारा मनाये जाने वाला त्यौहार मकर संक्रांति को ही लें, तो यह पौष मास में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है ! भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को ‘उतरायण‘ (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है।
aslo read : China will build largest dam on Brahmaputra River
makar sankranti : विभिन्न रूपों में मनाया जाता है
तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध् प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत‘ नाम से भी प्रसिद्ध है। संपूर्ण (सम्पूर्ण) भारत में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रांतों (प्रान्तों) में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व‘ है। प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही प्रयागराज में हर साल माघ मेले की शुरु आत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है, और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
happy lohri 2025 पंजाब में इसी दिन लोहड़ी मनाया जाता है। यह त्योहार मौसम बदलने, फसल पकने और शहादत की याद दिलाने के लिए बनाया जाता है।
मकर सक्रांति दे दिन ही आज से प्रयागराज में महाकुंभ शुरू हो गया है। आज पहले दिन 1.5 करोड़ लोगों ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगायी।
पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है
मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है।
मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र निदयों में स्नान का बेहद महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है ! उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है ! पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए, मतभेदों के बावजूद, मकर संक्रांति को महत्व दिया गया ! ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते है, तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मकता खुशी और समृधि के साथ साझा हो जाती है ! इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुडी हुई है ! जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी ! जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आँखें बंद की और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई !
पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है
इन सभी मान्यताओं के अलावा मकर संक्रांति पर्व एक उत्साह और भी जुड़ा है। इस दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है और लोग बेहद आनंद और उल्लास के साथ पतंगबाजी करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन भी किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सर्दियों में मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय के समय होने वाली खांसी, जुकाम और कई अन्य संक्रमणों से हमारा शरीर प्रभावित होता है। मानव शरीर के लिए एक औषधि के रूप में अपने अवरोही कार्य के समय सूर्य से निकलने वाली सूर्य की किरणों। इसीलिए लगातार पतंग उड़ाने वाले शरीर को धूप से शरीर मिलता है और इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। एक मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में, भगवान राम ने अपने भाइयों और श्री हनुमान के साथ मकर संक्रांति के दिन एक पतंग उड़ाई थी, इसलिए तब से यह परंपरा दुनिया भर में प्रचलित है। पतंगबाजी प्राचीन भारतीय साहित्य और धार्मिंक ग्रंथों में भी पाई जाती है।
