
Plagiarism : 9 दिसंबर, 2024 को इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर (IUAC) के सभागार में सोसाइटी फॉर साइंटिफिक वैल्यूज़ (SSV) के अध्यक्ष प्रोफेसर आर. के. कोटनाला Dr. RK Kotnala ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिक संस्थानों को “कॉपी-पेस्ट” शोध Research और वैज्ञानिक कदाचार से बचना चाहिए। SSV ने इस अवसर पर डॉ. औतर सिंह पेंटल मेमोरियल व्याख्यान का आयोजन किया, जिसमें प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडे ने अपना अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
Plagiarism : SSV का उद्देश्य और योगदान
SSV का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों में नैतिक और मानव मूल्यों को बढ़ावा देना है। यह संगठन राष्ट्रीय और संस्थागत स्तर पर संगोष्ठियों और चर्चाओं के माध्यम से इन मूल्यों का प्रचार-प्रसार करता है। इस वर्ष SSV ने प्रोफेसर पांडे की उल्लेखनीय उपलब्धियों और उनके प्रेरणादायक नेतृत्व को सम्मानित करते हुए आठवां डॉ. औतर सिंह पेंटल मेमोरियल व्याख्यान आयोजित किया।
प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडे का परिचय
प्रोफेसर पांडे की शैक्षणिक और व्यावसायिक उपलब्धियां अत्यंत प्रेरणादायक हैं। IUAC के निदेशक के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में, उन्होंने देश के लिए स्वदेशी MRI उपकरण विकसित किया। इसके अलावा, वे अन्य जटिल वैज्ञानिक उपकरणों के विकास के कार्य में भी अग्रसर हैं। इससे पहले वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज संस्थान के निदेशक और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) समिति के सदस्य के रूप में भी उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रोफेसर पांडे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बंगलौर के गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष और अन्य प्रतिष्ठित पदों पर भी कार्यरत रहे हैं।
डॉ. औतर सिंह पेंटल: एक प्रेरणास्रोत
डॉ. पेंटल, जो SSV के संस्थापक अध्यक्ष थे, को उनकी अद्वितीय चिकित्सा अनुसंधान और “बीटा ब्लॉकर्स” की खोज के लिए जाना जाता है। वे रॉयल सोसाइटी के फेलो, इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के अध्यक्ष, और ICMR के महानिदेशक भी रहे। उन्होंने पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना की और चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक नया मानदंड स्थापित किया।
पिछले पेंटल मेमोरियल व्याख्यान में प्रोफेसर एम.जी.के. मेनन, डॉ. आर.ए. माशेलकर, डॉ. टी. रामासामी, प्रोफेसर दीपक पेंटल, प्रोफेसर विनोद गौर, डॉ. वी.एम. काटोच और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने भाग लिया है।
वैज्ञानिक कदाचार: एक वैश्विक समस्या
प्रोफेसर कोटनाला ने कहा कि पिछले 25 वर्षों से वे SSV से जुड़े हुए हैं और पिछले 5 वर्षों से अध्यक्ष के रूप में इस संगठन के उद्देश्यों को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक कदाचार और साहित्यिक चोरी (प्लेज़रिज़्म) पर अपनी चिंता व्यक्त की।
भारत में वैज्ञानिक कदाचार और शोध में चोरी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। कई उच्च-प्रोफ़ाइल मामलों ने इस मुद्दे को उजागर किया है। हालांकि भारत ने इस दिशा में सुधार के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन यह समस्या अभी भी व्यापक है। अध्ययन बताते हैं कि कम और मध्यम आय वाले देशों में वैज्ञानिक कदाचार की घटनाएं उच्च-आय वाले देशों की तुलना में अधिक हैं।
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केवल भारत तक सीमित नहीं है। विभिन्न देशों में शोध डेटा के फर्जीकरण और गलत रिपोर्टिंग के मामले भी सामने आए हैं। हाल ही में किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, उच्च-आय वाले देशों के 2%-14% वैज्ञानिकों में डेटा को गढ़ने या फर्जी रिपोर्टिंग की संभावना होती है।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं
कार्यक्रम की शुरुआत दोपहर 3 बजे IUAC के सभागार में हुई और यह शाम 5 बजे तक चला। डॉ. पेंटल मेमोरियल व्याख्यान के बाद हाई टी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक समुदाय, छात्रों और शिक्षकों को अनुसंधान में नैतिकता और सच्चाई के महत्व से अवगत कराना था।
SSV ने इस अवसर पर एक बार फिर से अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया कि वह भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में नैतिकता और मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए काम करता रहेगा।
कॉपीकैट शोध और वैज्ञानिक कदाचार पूरे समाज के लिए हानिकारक
कॉपीकैट शोध और वैज्ञानिक कदाचार न केवल वैज्ञानिक समुदाय बल्कि पूरे समाज के लिए हानिकारक है। SSV जैसे संगठन वैज्ञानिक मूल्यों को बनाए रखने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए अनवरत प्रयास कर रहे हैं। प्रोफेसर पांडे और अन्य वैज्ञानिकों का योगदान इस दिशा में प्रेरणा का स्रोत है।
इस प्रकार, इस व्याख्यान ने वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि अनुसंधान में सच्चाई और नैतिकता को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।