Rights of males in India : अतुल सुभाष Atul Subhash Nikita singhania की आत्महत्या ने भारतीय कानून व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस करायी है. भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून बनाये हैं. जिनसे महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आई हैं. लेकिन इस प्रयास में पुरुष विलेन बन गया. अनेक बार कानूनों का दुरुपयोग हुआ और बेक़सूर पुरुष जेलों के पीछे ठूसें गए. अब समय आ गया की कानूनों की समीक्षा हो. कुछ कानूनों के बारे में जानकारी रहनी आवश्वक है.
संविधान में प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14
अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करता है.
हालांकि, भारतीय दंड संहिता या भारतीय न्याय संहिता के तहत लिंग-आधारित हिंसा के मामलों में पुरुषों को अपराध का कारण माना जाता है, और उन्हें अपराध के मुख्य अपराधियों के रूप में देखा जाता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15
अनुच्छेद 15 लिंग और अन्य भेदभाव के आधार पर भेदभाव करने पर रोक लगाता है। इसमें विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा और भलाई के लिए कानूनों का प्रावधान भी किया गया है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21
अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण पर केंद्रित है। यह यह निर्धारित करता है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय उन प्रक्रियाओं के जो कानून द्वारा स्थापित की गई हों।
हालांकि, अनुच्छेद 15 की प्रकृति के कारण संविधान में एक स्पष्ट असंतुलन देखा जाता है, जो भारत में पुरुषों के अधिकारों को प्रभावित करता है। जबकि अनुच्छेद 14 समानता पर जोर देता है और अनुच्छेद 21 नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा पर बल देता है, फिर भी आप पाएंगे कि अधिकांश मामलों में पुरुषों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। यह इस कारण है कि अनुच्छेद 15 महिलाओं की सुरक्षा पर जोर देता है, जबकि पुरुषों की सुरक्षा पर समान रूप से ध्यान नहीं दिया जाता।
संवैधानिक उपाय
जब भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या संविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होता है, नागरिकों को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क करने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 32 नागरिकों को उनके अधिकारों का उल्लंघन होने पर मामले दायर करने का अधिकार प्रदान करता है।
विवाह में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानून
Atul Subhash Suicide Case दिल्ली हाई कोर्ट ने सेलिब्रिटी शेफ कुणाल कपूर को उनकी पत्नी द्वारा ‘क्रूरता’ के आधार पर तलाक प्रदान किया है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी और मामले को मध्यस्थता केंद्र को भेज दिया था , ताकि कोर्ट के बाहर समाधान निकाला जा सके .
क्रूरता की परिभाषा व्यक्तियों की पृष्ठभूमि के आधार पर भिन्न होती है
दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय यह स्पष्ट करता है कि क्रूरता केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं होती, बल्कि इसका मतलब भावनात्मक और मानसिक उत्पीड़न से भी हो सकता है।
क्रूरता का मतलब व्यक्ति से व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है। यह किसी व्यक्ति की परवरिश, संवेदनशीलता, शैक्षिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, वित्तीय स्थिति, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों, मानव मूल्यों और उनके मूल्य प्रणाली पर निर्भर करता है। इसलिए, विवाहिक मामलों में क्रूरता निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित और सार्वभौमिक मानक नहीं हो सकते।
विवाहिक मामलों में क्रूरता अनगिनत रूपों में हो सकती है, यह सूक्ष्म या यहां तक कि बर्बर हो सकती है, और यह इशारे और शब्दों के रूप में भी हो सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में क्या कहा गया
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि विवाह के दो साल के भीतर, अपीलकर्ता ने स्वयं को एक सेलिब्रिटी शेफ के रूप में स्थापित किया है, जो उसकी मेहनत और संकल्प का परिचायक है, जो तभी संभव था अगर वह अपनी पत्नी या ससुरालवालों पर निर्भर नहीं होता।”
“इन तथ्यों को देखते हुए, यह केवल विवेकपूर्ण है कि यह केवल आरोप हैं जो प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लगाए गए हैं, और इस तरह के असमर्थित दावे किसी के सम्मान को प्रभावित करते हैं, और इसलिए, क्रूरता मानी जाती है।”
इस प्रकार, तलाक दिया गया है, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए।
पुरुषों को क्रूरता के मामलों में जानने योग्य नियम
हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 के तहत, “धारा 13(i)(a) के अनुसार, पति या पत्नी द्वारा प्रस्तुत याचिका पर तलाक का आदेश दिया जा सकता है, अगर यह साबित हो जाए कि विवाह के बाद दूसरे पक्ष ने याचिकाकर्ता के साथ क्रूरता की है।”
इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित मुख्य उपधारा हैं:
- यदि किसी पक्ष को अज्ञेय और लाइलाज कुष्ठ रोग हो; या
- यदि किसी को संक्रामक रूप में यौन रोग हो; या
- यदि कोई व्यक्ति धार्मिक आदेश में प्रवेश कर चुका हो; या
- यदि किसी व्यक्ति के जीवित होने की पुष्टि सात वर्षों से अधिक समय तक नहीं हो पाई हो, और ऐसे लोग जिन्होंने उसे जीवित रहने की संभावना के बारे में सुना हो।
इसके अलावा, अगर विवाह में सहवास या वैवाहिक अधिकारों की बहाली एक वर्ष या उससे अधिक समय तक नहीं हुई हो, तो भी तलाक की याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
माया देवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, “यदि पति या पत्नी के व्यवहार से यह सिद्ध होता है या इस पर उचित निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनके व्यवहार के कारण दूसरे पक्ष को मानसिक रूप से नुकसान हो रहा है, तो यह क्रूरता मानी जाएगी।”
इस प्रकार के मामलों में, क्रूरता की परिभाषा और इसका निर्धारण एक जटिल और व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जो विभिन्न कारकों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
भारत में पुरुषों के लिए कानूनी सुरक्षा: एक विस्तृत मार्गदर्शिका
भारत में पुरुषों के लिए कानूनी सुरक्षा एक आवश्यक और महत्वपूर्ण पहलू है। समाज में पुरुषों को अक्सर अपनी भूमिका और अधिकारों के बारे में कम ध्यान दिया जाता है। हालांकि, भारत की कानूनी प्रणाली ने पुरुषों के अधिकारों और उनके खिलाफ होने वाली हिंसा या अन्य अपराधों से सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं। इस लेख में हम उन कानूनों और उपायों का विश्लेषण करेंगे जो भारतीय कानूनी प्रणाली में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
पुरुषों के अधिकार और कानूनी संरक्षण का महत्व
भारत में पुरुषों के अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता पर बहस काफी समय से चल रही है। आमतौर पर, कानूनी संरक्षण की अवधारणा को महिला अधिकारों के संदर्भ में ही अधिक देखा जाता है, लेकिन यह जरूरी है कि पुरुषों के अधिकारों की भी समान रूप से रक्षा की जाए। पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और झूठे आरोपों के मामलों में कानूनी सुरक्षा के उपायों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
भारतीय कानूनी प्रणाली में पुरुषों की स्थिति
भारतीय कानूनों के तहत पुरुषों को कुछ विशेष कानूनी अधिकार दिए गए हैं। हालांकि, ये अधिकार उनकी सुरक्षा और न्याय के प्रति उनके हक को सुनिश्चित करते हैं, इन अधिकारों का सही ढंग से पालन नहीं होने के कारण पुरुषों को कई बार समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा का कानून
अब तक, घरेलू हिंसा से संबंधित कानून आमतौर पर महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाए गए थे। लेकिन पुरुषों को भी इस प्रकार के हिंसा का सामना करना पड़ सकता है। भारत में अब ‘घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005’ के तहत पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला भी दर्ज किया जा सकता है। यह कानून पुरुषों को भी हिंसा से बचाने का एक कानूनी उपाय प्रदान करता है।
पुरुषों के लिए घरेलू हिंसा के खिलाफ सुरक्षा उपाय
पुरुषों को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। इसमें शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा से बचाव के लिए कानूनी प्रावधान शामिल हैं। इस अधिनियम के तहत, यदि कोई पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होता है, तो वह पुलिस से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है और आरोपी के खिलाफ अदालत में मुकदमा भी दायर कर सकता है।
विवाह में पुरुषों के अधिकार
विवाह के दौरान पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी कुछ कानूनी उपाय किए गए हैं। खासकर जब कोई विवाह टूटता है, तब पुरुषों को संपत्ति और अन्य अधिकारों के बारे में कानूनी सुरक्षा प्राप्त करनी होती है।
तलाक के बाद पुरुषों के अधिकार
तलाक के मामलों में पुरुषों के लिए एक कानूनी दृषटिकोन जरूरी है। बहुत बार पुरुषों को ही नुकसान उठाना पड़ता है, खासकर जब संपत्ति के बंटवारे या बच्चों की कस्टडी के मामले होते हैं। हालांकि, भारतीय कानून ने यह सुनिश्चित किया है कि पुरुषों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो।
महिलाओं के समान पुरुषों के लिए कानूनों का विकास
समाज में महिला अधिकारों को बढ़ावा देने के बावजूद, पुरुषों के अधिकारों का भी समान रूप से विकास हुआ है। समय के साथ, भारत की कानूनी व्यवस्था ने यह सुनिश्चित किया है कि पुरुषों को भी उनके अधिकार मिलें और उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा का सामना न करना पड़े।
पुरुषों को बलात्कार और यौन उत्पीड़न से बचाने वाले कानून
हालांकि भारत में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के अधिकतर मामले महिलाओं से संबंधित होते हैं, पुरुषों के खिलाफ भी इस तरह के अपराध हो सकते हैं। भारतीय कानून ने पुरुषों के लिए भी बलात्कार और यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के प्रावधान किए हैं, ताकि वे भी न्याय पा सकें।
पुरुषों के खिलाफ झूठे यौन उत्पीड़न के आरोप
पुरुषों के खिलाफ झूठे यौन उत्पीड़न के आरोपों के मामले भी बढ़ रहे हैं। इससे पुरुषों की प्रतिष्ठा और जीवन पर गहरा असर पड़ता है। इस प्रकार के आरोपों से बचने के लिए भारतीय कानूनी प्रणाली ने सुरक्षा उपाय बनाए हैं।
भारत में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी संगठनों का योगदान
भारत में कई संगठनों और एनजीओ ने पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया है। इन संगठनों ने पुरुषों को कानूनी सहायता प्रदान की है और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया है।
पुरुषों के अधिकारों के लिए जागरूकता अभियान
पुरुषों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए गए हैं। इन अभियानों के माध्यम से पुरुषों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी जाती है और कानूनी सहायता के उपायों के बारे में बताया जाता है।
पुरुषों के खिलाफ हिंसा के मामलों में न्याय कैसे मिले
यदि पुरुषों के खिलाफ कोई हिंसा होती है, तो वे न्याय पाने के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं। भारतीय अदालतों ने पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए विशेष प्रावधान किए हैं, ताकि वे न्याय पा सकें।
पुरुषों के अधिकारों के लिए सजा और पुरस्कार की प्रक्रिया
कानूनी प्रक्रिया के तहत पुरुषों के अधिकारों की रक्षा की जाती है और सजा या पुरस्कार की प्रक्रिया के माध्यम से उनके अधिकारों को मान्यता दी जाती है।
पुरुषों के खिलाफ हिंसा के मामलों में सरकारी योजनाएँ
सरकार ने पुरुषों के खिलाफ हिंसा के मामलों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं के माध्यम से पुरुषों को कानूनी सहायता मिलती है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
धन्यवाद सर
आपके ब्लॉग की सहायता से इतनी महत्वपूर्ण जानकारी, सरल शब्दों में मिल पाई 🙏😇
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