Share Market अमेरिका में जब से डोनाल्ड ट्रंप Donald Trump राष्ट्रपति चुनाव जीते हैं तब से देश दुनिया के बाजारों में उठापटक मची हुई है। अमेरिकी डालर लगातार मजबूत हो रहा है और दुनिया में, खासतौर से एशियाई देशों की मुद्राओं में डालर के मुकाबले तेज गिरावट आ रही है। भारतीय शेयर बाजार सितंबर 2024 तक तेजी के नये रिकार्ड बना रहे थे, इनमें देशी- विदेशी निवेशक लगातार खरीदारी कर रहे थे। तब तक अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय रूपया भी सामान्य व्यवहार कर रहा था। लेकिन जैसे ही अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हुये और डोनाल्ड ट्रंप को विजयी घोषित किया गया पूरी दुनिया के बाजारों में उठापटक शुरू हो गई। देश में बीएसई सेंसेक्स सितंबर 2024 में जहां 86,000 अंक से उपर निकल गया था वहीं अब यह 11 प्रतिशत से अधिक गिरकर 76,300 के आसपास है।
Share Market और गिरावट की आशंका
वृहद आधार वाला निफ्टी-50 भी अपने उच्च स्तर से 12 प्रतिशत गिरकर 23,086 अंक पर आ गया है। वहीं, अमेरिकी डालर के मुकाबले रूपया 3 प्रतिशत से अधिक गिरकर 86.59 रूपये प्रति डालर के निम्न स्तर तक पहुंच चुका है। आने वाले समय में इसमें और गिरावट की आशंका व्यक्त की जा रही हैं। दरअसल, वित्तीय बाजारों की यह उठापटक इस आशंका के चलते है कि जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालेंगे तो वह अमेरिका में आने वाले माल पर आयात शुल्क बढ़ायेंगे। चुनाव में उनका नारा रहा था ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ जिसे संक्षेप में एमएजीए यानी ‘मागा’ कहा गया है। उनकी जबर्दस्त जीत में इस नारे की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है, और इसी आधार पर यह माना जा रहा है कि वह विभिन्न देशों के साथ व्यापार में अमेरिका का हित सबसे आगे रखेंगेे, हर मामले में नये सिरे से मोल-भाव करेंगे।
आयातों पर भी शुल्क में बदलाव किया
उनके पिछले कार्यकाल में चीन के साथ चला शुल्क युद्ध काफी चर्चा में रहा था। उन्होंने तब भारत से होने वाले कुछ आयातों पर भी शुल्क में बदलाव किया था। यही वजह है कि अमेरिकी डालर लगातार मजबूत हो रहा है। डालर की मजबूती को देखते हुये जो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अब तक भारतीय बाजारों में निवेश कर रहे थे वह डालर निकाल रहे हैं। डालर निकासी से देश का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है। सितंबर 2024 से 3 जनवरी 2025 तक विदेशी मुद्रा भंडार 70 अरब डालर घट चुका है। यह 704 अरब डालर की उंचाई से घटकर 634 अरब डालर रह गया है। डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालेंगे। वहां दिन तय हैं, नवंबर में चुनाव और 20 जनवरी को सत्ता हस्तांतरण। उसके बाद ही ट्रंप प्रशासन अपना काम शुरू करेगा।
ट्रंप प्रशासन की क्या नीतियां रहती है
उसके बाद ही पता चल सकेगा की ट्रंप प्रशासन की क्या नीतियां रहती है और क्या कदम उठाये जाते हैं। डोनाल्ड ट्रंप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अच्छा मित्र माना जाता है। इसलिये भारत के साथ व्यापार में उनकी नीति में किसी बड़े उलटफेर की उम्मीद कम ही लगती है, लेकिन बाजार इन चीजों को नहीं मानता है, बाजार शंका- आशंकाओं के आधार पर व्यवहार करने लगता है। उसके बाद वास्तव में जो होता है उस पर उसकी प्रतिक्रिया अलग तरह की होती है। इसलिये हमें यह मानकर चलना चाहिये कि डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने और उनके प्रशासन की नीतियां सामने आने तक बाजार की उठापटक जारी रह सकती है।
डालर निकासी से रूपया कमजोर हो रहा है और उसका असर कहीं न कहीं हमारे विदेश व्यापार पर पड़ रहा है। आयातकों पर इसका असर पड़ रहा है। रूपये के लिहाज से आयात महंगा हो रहा है, हालांकि, निर्यातकों को कुछ हद तक इसका लाभ मिल सकता है क्योंकि डालर में उनका माल कुछ सस्ता होगा जिससे मांग बढ़ेगी। आप यदि विदेश पढ़ने जा रहे हैं, अथवा घूमने जा रहे हैं तो वहां पूरा खर्च आप विदेशी मुद्रा में करेंगे, ऐसे में विदेशी मुद्रा खरीदना महंगा पड़ेगा। किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिये विदेशी मुद्रा की बड़ी अहमियत होती है। देश के विदेश व्यापार के मोर्चे पर तस्वीर ज्यादा उजली नहीं है।
भू-राजनीतिक परिस्थितियां तनावपूर्ण और अनिश्चित हैं
विश्व व्यापार में नरमी बनी हुई है। भू-राजनीतिक परिस्थितियां तनावपूर्ण और अनिश्चित हैं। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल से नवंबर में वस्तु एवं सेवा निर्यात कुल 536.25 अरब डालर रहा है, वहीं कुल आयात 619.20 अरब डालर तक पहुंच गया। हमारा सेवा निर्यात, आयात के मुकाबले अधिक रहने के बावजूद कुल मिलाकर 82.95 अरब डालर का व्यापार घाटा है, जो कि एक साल पहले की समान अवधि में 66.91 अरब डालर था। वस्तु निर्यात के मोर्चे पर काफी कमजोरी दिखाई देती है।
अप्रैल- नवंबर, आठ माह में वस्तु निर्यात 284.31 अरब डालर रहा जबकि आयात इससे कहीं अधिक 486.73 अरब डालर तक पहुंच गया। इस प्रकार वस्तु व्यापार में 202.42 अरब डालर का घाटा है। भला हो सेवा निर्यात अधिशेष का जिससे यह घाटा कम होकर 82.95 अरब डालर रह गया। हमें वस्तु निर्यात और सेवा निर्यात दोनों मोर्चों पर और बेहतर करना होगा। रूपया कमजोर होने से हमारा आयात महंगा हो जाता है, महंगे आयात का असर कहीं न कहीं महंगाई पर पड़ता है। डालर के समक्ष रूपये में आती गिरावट को थामने के लिये रिजर्व बैंक बाजार में लगातार डालर झोंक रहा है। मुद्रा बाजार में डालर की मांग अधिक है, लेकिन उपलब्धता कम यही वजह है कि रूपये की कीमत घट रही है।
100 अरब डालर मुद्रा बाजार में झोंक चुका है
एक अनुमान के मुताबिक पिछले कुछ महीनों के दौरान रिजर्व बैंक करीब 100 अरब डालर मुद्रा बाजार में झोंक चुका है ताकि रूपये की गिरावट पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सके। एक साल पहले जनवरी में विनिमय दर 82.92 रूपये प्रति डालर थी जो कि 13 जनवरी 2025 को 86.60 रूप्ये प्रति डालर के अब तक के सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गई। अमेरिकी अर्थव्यवस्था से लगातार मजबूती के समाचार हैं। अमेरिका में उम्मीद से बेहतर रोजगार आंकड़े आने से रूपये में अब तक की यह सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। रिजर्व बैंक डालर की इस गिरावट को थामने के लिये कहां तक डालर बाजार में बेचेगा और इसका देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर कितना असर होगा। यह देखने की बात है।
वाणिज्यिक बैंकों के पास रूपये की तंगी जैसी होती दिख रही है
केन्द्रीय बैंक हाजिर और फारवर्ड बाजार दोनों में ही रूपये की गिरावट थामने का प्रयास कर रहा है। इसका एक प्रतिकूल असर यह भी हो रहा है कि वाणिज्यिक बैंकों के पास रूपये की तंगी जैसी होती दिख रही है। बहरहाल, यह माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक अपनी रणनीति में कुछ बदलाव कर सकता है। यदि रूपये की गिरावट पर ज्यादा अंकुश लगाया गया तो भारतीय मुद्रा अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकती है।
सितंबर 2024 से 10 जनवरी 2025 के बीच अमेरिकी डालर के मुकाबले रूपया जहां 2.4 प्रतिशत गिरा है वहीं मलेशियाई रिंगिट 3.1 प्रतिशत, फिलिपींस पैसो 3.4 प्रतिशत, सिंगापुर डालर 4.8 प्रतिशत और जापानी येन में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। सोमवार 13 जनवरी को इनमें और गिरावट दर्ज की गई। ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा रूप्ये को मजबूत रखने के प्रयास का प्रतिकूल परिणाम हो सकता है। अर्थतत्र में रूपये की तरलता सूखने का आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ सकता है। देर सबेर रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में भी कमी लानी होगी ताकि जीडीपी वृद्धि को समर्थन दिया जा सके।

Sr Journalis
वरिष्ठ पत्रकार – महावीर सिंह पिछले 35 वर्षो से अर्थव्यवस्था की रिपोर्टिग कर रहे हैं। उन्होंने पीटीआई और अन्य मीडिया संस्थानों को सेवाएं दी हैं।