Socialism – Communism : समाजवाद एक वैचारिक यात्रा

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Deepak Dube , Journalist, IIMCian

Socialism : Communism समाजवाद एक ऐसा विचार है जिसने पूरे विश्व में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाला । समाजवाद का सिद्धांत अपने आप में एक यात्रा है, जो विभिन्न कालों में विभिन्न चरणों से गुजरा है। यह विश्व पटल पर औद्योगिक क्रांति से लेकर आज के लोकतंत्र में विभिन्न रूपों में विद्यमान है। इस लेख में समाजवाद के विभिन्न पक्षों और भारत में समाजवाद को समझने का प्रयास करेंगे।

Socialism समाजवाद की जड़ें औद्योगिक क्रांति में पाई जाती हैं

सबसे पहले समाजवाद की बात करें तो समाजवाद की जड़ें औद्योगिक क्रांति में पाई जाती हैं। औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर उत्पादन और शहरीकरण को बढ़ावा दिया। इसने श्रमिक वर्ग को शोषण और असमानताओं का शिकार बनाया, जिससे समाजवाद का उदय संभव हो पाया। वास्तव में सामजवाद में कहीं न कहीं पूंजीवादी व्यवस्था के लिए प्रतिरोध छुपा है। औद्योगिक क्रांति से लंबे कार्य घंटे, कम वेतन, असुरक्षित कार्य स्थितियां, और बाल श्रम आदि तत्व दृष्टिगोचर हुए। इसके बाद श्रमिकों को संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा। यहीं से समाजवादी विचारधारा की जड़ मजबूत हुई ।

समाजवाद के तहत मुख्यत: तीन धाराएं हैं-

यूटोपियन समाजवाद : इस आंदोलन के शुरुआती विचारकों में सेंट साइमन आदि शामिल थे।

वैज्ञानिक समाजवाद कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने समाजवाद को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित किया।

लोकतांत्रिक समाजवाद यहां संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से समाजवादी नीतियों को लागू किया जाता है।

इसी क्रम में मार्क्सवाद की बात विस्तार से करना जरूरी हो जाता है। इसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने विकसित किया। मार्क्सवाद यह मानता है कि मानव इतिहास, वर्ग संघर्ष का इतिहास है। मार्क्स के अनुसार, समाज के उत्पादन के साधनों और उत्पादन संबंधों का विकास समाज की प्रगति को निर्धारित करता है। कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो (1848), मार्क्स और एंगेल्स द्वारा लिखित यह पुस्तक मार्क्सवाद का घोषणापत्र है। दास कैपिटल (1867), यह मार्क्स की प्रमुख लेखनी है जिसमें पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया गया है।

वैश्विक स्तर पर समाजवादी आंदोलन और क्रांतियों को हम निम्न तरह से देखते हैं-


रूसी क्रांति (1917) रूसी क्रांति में बोल्शेविक पार्टी ने ज़ार शासन को समाप्त कर सोवियत संघ की स्थापना की। क्यूबा क्रांति (1959) – फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में क्यूबा में समाजवादी क्रांति हुई।
वैश्विक स्तर पर समाजवाद ने समय के साथ विभिन्न रूप और धाराएं विकसित की हैं। सबसे पहले लोकतान्त्रिक समाजवाद, यह समाजवाद का एक रूप है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से समानता प्राप्त करने की बात
करता है। दूसरा, मार्क्सवादी-लेनिनवादी समाजवाद, इसमें एक पार्टी शासन, केंद्रीकृत योजना और राज्य के स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था आदि पर जोर दिया जाता है। तीसरा, माओवाद, इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में क्रांति और किसानों को केंद्र में रखा गया। आपको बता दें कि इसके तहत कृषि सामूहिकीकरण और सांस्कृतिक क्रांति जैसी नीतियों को अपनाया गया।

समाजवाद को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है। राज्य के स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था के कारण आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हुई। साथ ही कुछ राज्यों में मानवाधिकारों का हनन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभाव भी देखा गया ।

साम्यवाद का भारत पर असर

आपको बता दें कि 1950 और 1960 के दशकों में, भारत सरकार ने समाजवादी नीतियों को अपनाया और योजना आयोग के माध्यम से पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की। पहली पंचवर्षीय योजना (1951-1956) ने कृषि और सिंचाई पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) ने औद्योगिकीकरण पर जोर दिया। समाजवाद ने जातिगत भेदभाव, महिला अधिकार और दलितों के सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए । सरकारी नीतियों में समाजवादी तत्वों का समावेश हुआ, जिससे गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। समाजवादी आंदोलन ने भारतीय राजनीति में वैचारिक बहस और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत किया । इस विचार ने भारत में नीतियों और आर्थिक विकास को प्रभावी तरीके से संबोधित आजादी के बाद भारत ने भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति अपनाई, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों का समावेश था। साथ ही कोयला, इस्पात, बैंकिंग और बीमा जैसे प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया
गया।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि समाजवाद ने वैश्विक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके तहत संसाधनों के समान वितरण की दिशा में अनेक प्रयास किए गए। हालांकि, इसे अनेक आलोचनाओं का भी सामना कारण पड़ा है । आज के वैश्विक व्यवस्था में समाजवाद चुनाव से लेकर नीति निर्माण में एक अहम भूमिका निभाता है। वैश्विक राजनीति और समाज में आज भी इसकी प्रासंगिकता बरकरार है।

  • दीपक दुबे

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