श्रीमद भगवद से मोक्ष संभव है : आचार्य हिमांशु गैरोला

व्यास पीठाचार्य आचार्य हिमांशु गैरोल जी हिमांशु गैरोल जी कथावाचक हैं . उत्तराखंड के उत्तरकाशी का रहने वाले हैं आपने ऋषिकेश और हरिद्वार से शिक्षा दीक्षा प्राप्त की. उसके बाद वृंदावन गया दो सा तक वह वृंदावन में रहे जहाँ उन्रहोंने कथावाचन और अन्हाय अध्यात्म की शिक्षा गृहण की. 20161 आपकी कथा यात्रा हुई की कृपा.

प्रस्तुत है आचार्य गैरोला से बातचीत

Table of Contents

श्रीमद् भागवत की शुरुआत कैसे हुई और उसका प्रवचन आपने श्रीमद भागवत का ही क्यों चुना ?

मैं भागवत भी करता हूं शि पुराण भी करता हूं और श्रीमद देवी भागवत की कथा भी करता हूं राम कथा भी करता हूं.

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असल में श्रीमद् भागवत है क्या

श्रीमद् भगवत गीता अलग है और श्रीमद् भागवत कथा अलग है जो श्रीमद् भागवत कथा है वो सबसे पहले वेदव्यास जी ने जब 17 पुराण लिख दिए थे सबसे पहले वीर व्यास जी ने भविष्य के लोगों पर नजर डाली क्योंकि वेदव्यास जी भगवान के कला अवतार हैं और वह जानते थे कि भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों को जानने वाले थे वेदव्यास जी वेदव्यास जी के पिता जी का नाम है पाराशर
जी तो पाराशर जी के ही पुत्र हैं वेदव्यास जी उनकी माता जी का नाम है सत्यवती उन सत्यवती जी का जो विवाह हुआ वो बाद में शांतनु राजा के साथ हुआ वो क्यों हुआ

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उसमें बहुत बड़ी कहानी है क्योंकि वो महाभारत से जो महाभारत के पांडव और कौरव है उनसे जड़ वो जुड़ा हुआ है तो व्यास जी का जन्म हुआ व्यास जी ने जब भविष्य पर नजर डाली तो भविष्य क्या दिखाई दिया कि मंद सु मंद मत तयो मंद भागय पदत जीवों का कल्याण कैसे होगा क्योंकि इनकी भाग्य भी मंद है और बुद्धि भी मंद है क्योंकि जब सतयुग था ना साहब तो सतयुग एक ऐसा युग था एक बार फसल बनी थी और कई बार काटते रहो उसके बाद त्रेता युग आया त्रेता युग में एक बार फसल बनी थी और सात बार उगती थी उसके बाद द्वापर युग आया द्वापर युग में एक बार फसल बनी थी और तीन बार उगती थी लेकिन जैसे ही ये कलयुग आया तो कलयुग बार एक बार फसल बो तो एक ही बार काटो जीव भी मंद इसका कल्याण कैसे होगा तो उन्होंने एक वेद के चार विभाजन कर दिए अब वेद कहां से आया वेद परमात्मा है वेद भगवान का ही एक स्वरूप है तो वेद व्यास जी ने वेदों को नहीं लिखा वेद का विभाजन किया उसका विस्तार किया व्यास का अर्थ होता है जो विस्तार करे,

तो उन्होंने एक वेद के चार विभाजन कर दिए फिर भी उनको शांति नहीं तो उन्होंने पंचम वेद महाभारत की रचना करी फिर भी शांति नहीं मिली तो पुराणों को लिखा फिर भी शांति नहीं तो 17 पुराण लिख डाले फिर भी मन को शांति नहीं तब देवऋषि नारद जी उनके पास आए और उन्होंने कहा कि आप भगवान श्री कृष्ण के गुणावा को गाइए और तब जाकर के आपके चित को शांति मिलेगी तब व्यास जी ने भागवत का अर्थ होता है जो भगवान का है वह भागवत है और फिर व्यास जी ने भागवत की रचना करी और संसार तक ये कथा को पहुंचाया जी तो अब हम कहते हैं कि जब हम भागवत अगर सुनते हैं पढ़ते हैं पढ़ने अगर हम जो सुनते भी हैं तो सुनते भी है तो उसको उसके जितने कष्ट होते हैं वो दूर हो जाते हैं.

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तो भागवत का रहस्य क्या है ऐसा क्या है उसमें जैसे कल भी आप कह रहे थे कि रस है और वो इतना मृदु है कि अगर आप उसका रस पान करें तो मुक्ति मिल जाती है

जी जी वो क्या रहस्य है सबसे पहले भागवत की कथा का प्रचलन क्यों हुआ जी अन्य कथा का क्यों नहीं हुआ क्य हां प्रश्न ये है प्रश्न भागवत की कथा इस इसलिए हुआ क्योंकि पदम पुराण में इसका महात्म है स्कंद पुराण में भी इसका महात्म लिखा गया है कि भागवत की कथा से धुंधकारी का उद्धार हुआ धुंधकारी एक महा प्रेत था आप जानते हो वो उसने अपने पिताजी को लात मार कर के भगाया अपनी माताज को भी उसने घर से भगाया तो मरने के बाद ब्राह्मण होता हुआ ब्राह्मण का पुत्र होता हुआ वो धुंधकारी महापे जब मरने के बाद महापे हुआ तो व अपने भाई के पास आया सपने में आया और उसको साक्षात दर्शन दे कि मैं महा प्रेत हूं मेरी मुक्ति के लिए कुछ करिए तो गोकर्ण जी उनके भाई हैं उन्होंने कहा कि मैंने गया में जाकर के तेरा श्राद्ध किया फिर तेरी फिर मुक्ति क्यों नहीं हुई तो धुंधकारी ने कहा कि गया में जाकर के आप स श्राद भी करोगे तब भी मेरी मुक्ति नहीं होने वाली गया

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श्राद सते नाप मुक्ति मेन भविष्यति गया में जाकर के आप स श्राद भी करोगे तो भी मेरी मुक्ति होने वाली नहीं है तो बोले मैं क्या करूं क्या करूं तेरी मुक्ति के लिए बोले भैया आप ज्ञानी हो आप कुछ करिए तब गोकर्ण जी ने सब जोग सब जगह पूछा कि मैं क्या करूं कौन सा उपाय करूं मेरे भाई की मुक्ति हो जाए इसका तर्पण से कुछ नहीं हो रहा है पिंड दान देने से कुछ नहीं हो रहा है गया में जाने से कुछ नहीं हो रहा क्या करूं तब भगवान सूर्य से पूछा और भगवान सूर्य भगवान नारायण के स्वरूप है उन्होंने कहा कि भागवत की कथा सुनाइए और उससे धुंधकारी का उद्धार हो जाएगा तब गोकर्ण जी ने भागवत की कथा का आयोजन किया और भागवत की कथा धुंधकारी ने भी सात दिनों तक सुनी और उस कथा से धुंधकारी का उद्धार हुआ तो मान्यता यह है कि जब कथा जब श्रीमद् भागवत की कथा धुंधकारी का उद्धार कर सकती है तो लोगों का मानना यह है कि हमारे प्रेतों का ये हमारे पित्रों का भी उद्धार हो जाएगा हम मन में आस्था आ गई कि जब धुंधकारी का उद्धार हो सकता है तो हमारे पितरों का क्यों नहीं उद्धार हो सकता है हम हमारे पर सामर्थ है भगवान ने दिया है तो हम भी अपने पित्रों के लिए कुछ करवाएंगे इसलिए यह प्रचलन ज्यादा चला भी अपने पित्रों के लिए भागवत की कथा करवानी चाहिए पुराण तो बहुत हैं कथाएं भी बहुत हैं लेकिन भागवत की कथा से प्रेतों का उद्धार हो जाता है इसलिए उन्होंने कहा कि हमारे पित्रों का भी उद्धार हो जाएगा .\

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आपने एक उदहारण दिया उदाहरण जैसे आपने दिया कि लोग कहते हैं कि हमें परमाण चाहिए तो अगर हम कहे कि कुछ परमाण ऐसे है क्या कि अगर हम भागवत कराते हैं तो हमारे जितने पित्र हैं या जो प्रेत आत्माएं हैं उनको मुक्ति मिल जाती है

अगर ऐसे कुछ उदाहरण हो ऐसे हमारे वेदों में या हमारे और जो अन्य पुराण है हमारे शास्त्रों में उनका अगर जिक्र हो सके साक्षात उदाहरण तो यही है कि भक्ति माता के जो दो पुत्र थे ज्ञान और वैराग्य वो वृद्ध अवस्था में पड़े हुए थे ज उनके निमित्त भी जब भागवत की कथा करवाई गई तो उनका भी उद्धार हुआ होता क्या था एक जगह हमने कथा करी तो लोग कहते थे महाराज हमारे गांव में शियाल बहुत रोते हैं जब भी सोने पड़ो तो यहां रोते रहते हैं हर समय रोते रहते हैं ना जाने क्या है और यहां इस गांव में अकाल मौत भी बहुत हुई है कि लोगों की हमने कहा व वहां पर आप श्रीमद् भागवत कथा करवाइए तो जब से वहां पर भागवत कथा हुई वहां उन्होंने आयोजन करवाया सुंदर और भागवत की कथा हुई तब से वो सियार रोने ही बंद हो गए ये इसका प्रमाण है .

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कुछ और रहस्य के बारे में बात कर सकते हैं कि हम श्रीमद् भागवत को केवल कथाओं के जरिए नहीं या कथा वाचन के जरिए नहीं अपने घरों में भी पढ़ सके क्योंकि कहीं कहीं कुछ ऐसा लिखा हुआ है कि श्रीमद् भागवत को या जो जितने हमारे वेद है उनको अपने घरों में नहीं पढ़ सकते या उसका पढ़ने का उसका कुछ विधान होता है अगर ऐसा कुछ है तो बताइए

देखो पढ़ने की बात है जहां तक ज्ञान लेने की बात है ज्ञान तो आप पढ़ने के लिए आप कोई भी पढ़ सकता है लेकिन जो अनुष्ठान है अनुष्ठान केवल ब्राह्मण से ही करवाना चाहिए ऐसा हमारे वेदों ने आज्ञा दी है दूसरी बात यह है कि वेदों को पुराणों को असोच अवस्था में नहीं पढ़ना चाहिए असो अवस्था में नहीं पढ़ना चाहिए तो भैया अगर आप असो अवस्था में नहीं नहाएंगे नहीं धोएंगे नहीं और सीधी पुस्तक उठाए और पढ़ने लग गए तो उसका तो गलत विपरीत फल मिलेगा ही मिलेगा तो इसलिए कहा कि शुद्धता से पवित्रता से उसको पढ़ो उसका स्वाध्याय करो आपका भी कल्याण होगा और सुनने वाले का भी कल्याण होगा

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इसमें जिक्र आता है कि 84 लाख योनि है और उसके बाद एक योनि मनुष्य की मिलती वो 84 लाख का क्या रहस्य है क्यों 84 लाख है क्योंकि गीता में ही भगवान ने तो कहा है कि बार-बार जन्म लेना पड़ता है और बार-बार मरना पड़ता है तो 84 लाख जो योनि है वहां से जोड़ सकते हैं

जी जी मनुष्य जीवन बड़ी पुण्य से मिलता है साब हमारे पुराणों में कहा गया है दुर्लभ मानसो देहो देहि नाम क्षण भंगुर हे मनुष्य तुझे जो यह मनुष्य शरीर मिला हुआ है य ये बड़ा दुर्लभ है क्यों है दुर्लभ क्योंकि मनुष्य शरीर में समझ है विवेक है बुद्धि है उसके अंदर वह जानता है सत क्या है असत क्या है अच्छा क्या है बुरा क्या है पशुओं में यह चीज नहीं है लाख योनि तो 84 लाख है जीव 84 लाख योनियों में भटक करके ही मनुष्य योनि में आता है और जब भगवान का भजन करता है तो इसी से उसका जो है उद्धार होता है तो 84 लाख योनियों में जाने के बाद भी व मां के गर्भ में जाता है मां के गर्भ में भी उसको बहुत कष्ट मिलता है वह भी एक कुंभी पाक नरक है जब जीव मां के गर्भ में रहता है तो वहां उसको ना पानी मिलता है ना खाना मिलता है वहां तड़प ना हवा है ना पानी है कुछ भी नहीं है फिर भी व आपनी ना भगवान कपिल ने कहा कि मां के पेट में भी वह बालक रस ग्रहण करते रहता है फिर भी वहां क्लेश तो उसको मिलता है ना क्योंकि मलम के साथ रहता व हुआ तो जैसे उसको जन्म मिला तो संसार में आकर के हम हम करके रोया कौन है भाई ये लोग तो मां उसका करवाती है यह तेरे अपने हैं यह तेरे पराय हैं वहीं से माया शुरू हो जाती है इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य शरीर बड़ा दुर्लभ है इस मनुष्य शरीर को यदि पार करना है तो तुम भगवान का भजन करो मोक्ष पाओ मोक्ष .

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क्या है मोक्ष क्या है?

संसार से विस्मृति और उस परमात्मा की स्मृति ही मोक्ष है .

ऐसा कहते हैं जैसे भगवान ने गीता में कहा कि अगर आपने पुनर जन्म और पुनर मरण पुनर्प जन्मम पुनर मरण इससे मुक्ति पानी है जी तो आप मुझ में आप समर्पित हो जाए जी आपका जो जन्म और मरण का कर्म है वो खत्म हो जाएगा हा क्या ऐसा संभव है

पतन फला सा बंद भई मृत्यु जहां पर नाई पाफ बा भा मा रहित तो अपवर्ग कहा अपवर्ग का नाम ही मोक्ष है है ना पाफ बा भा मा रहित पा मन पतन आप जिस योनि में हर व्यक्ति पा की इच्छा करता है मैं यह करूंगा तो यह पाऊंगा है ना वो काऊंगा अगर मोक्ष मिल गया तो यह परम पद भी है मोक्ष को पाना उसके बाद फ फावन फला सा फल की इच्छा अगर मोक्ष का फल मिल गया तो कुछ भी पाने की कुछ भी फल की इच्छा नहीं रहेगी पा फ ब उसके बाद बा माने बंधन यहां प्रत्येक व्यक्ति बंधन में है कोई घर से बंधन में है कोई परिवार से है कोई संसार से है हर व्यक्ति यहां बंधन से जुड़ा हुआ है अगर मोक्ष हो गया तो सारे बंधन खुल गए उसके बाद बा के बाद भा भा मन भय यहां प्रत्येक व्यक्ति भी भया क्रांत है और सबसे बड़ा भय तो यहां मृत्यु का है इस मृत्यु के भय से
भी वो दूर हो जाता है अगर उसका मोक्ष हो गया भावन भय और मा मने मृत्यु मृत्यु के भय से भी वो जन्म मरण जो यह प्रपंच है उससे उसकी मुक्ति हो जाती है और मुक्ति होना ही मोक्ष है पाप के भी बारे में हम चर्चा करेंगे क्योंकि पाप के लोग अलग-अलग इसकी परिभाषा देते हैं

पाप क्या है किस व्यक्ति के लिए कौन सा पाप है

दूसरे के चेहरे पर आंसू लाना ही महापाप है और इससे मुक्ति कैसे मिलेगी अगर आप दूसरे के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हो वही पुण्य है और उसी से मुक्ति है लेकिन हमारे जो मानव स्वभाव है उसमें जैसे हमने देखा कि लोभ जी अगर लोभ है तो पाप नहीं जा सकता तो वो जो लोभ और लालच उसे मुक्ति मिले उसके लिए क्या करना चाहिए क्योंकि जो आपने जी जी जो आप भागवत में बताते हैं और तमाम हमारे जो शास्त्रों में भी यही चीज लिखी है लेकिन उसे वास्तव में मनुष्य के अंदर के पाप और जो उसका जो भय है उसका जो लोभ है जो लालच है वो नहीं जाता है जी उसके लिए उसको गुरु की शरण में जाना पड़ेगा गुरु की शरण में जाएगा गुरु उसको ज्ञान देंगे और जब उसके अंदर ज्ञान उतर जाएगा तब उसको खुद ही लग जाएगा कि यह संसार मिथ्या है लोभ करके क्या करेगा लोभ में तो सब सब लोग ठेलम ठेला महाराज जितने भी लोभ लोभी हुई उन सबका पतन हुआ है लोभ ही तो पतन करवाता है रावण के पास सोने की लंका थी मंदोदरी जैसी महारानी थी और फिर भी उसको सीता जी को पाने की इच्छा उसी से उसका विनाश हो गया तो लोभ विनाश का महा कारण है .

तो अब जैसे हम बात करें कि मोटिवेशन यानी जिन लोगों का मन पर अपना वश नहीं है लोभ आता है और लोभ के साथ फिर पाप भी करता है पाप के साथ फिर वो अपराध करता है अगर हम मोटिवेट करें लोगों को अगर हम लोगों को प्रेरित करें कि अगर आपको मुक्ति पानी है अगर आपको मोक्ष जाना तो ये ये पाप आपको नहीं करने उसका सबसे बढ़िया तरीका क्या है

सबसे बढ़िया तरीका भगवान का भजन है जी . इससे बड़ा तरीका कोई हो नहीं सकता अगर आप भगवान राम जी का भजन करेंगे हरे राम हरे कृष्ण करेंगे तो संसार से विस्मृति भी होगी और हर चीज से आपका जो है यह संसार काम क्रोध लोभ मध मास ईष द्वेष जो छल कपट है इनसे मुक्ति मिलेगी और जो हमारा जो हम कहेंगे कि मुख्य तौर पर हम अगर मोक्ष की बात करें तो क्या मोक्ष संभव है क्या हा संभव है भगवान ने कहा है कि अगर तुम यहां पर पुण्य कर्म करते हो अगर कोई पुण्यात्मा होता है तो वह स्वर्ग जाता है स्वर्ग में उसको सुख भोग मिलते हैं लेकिन स्वर्ग में व्यक्ति तभी तक रह सकता है जब तक उसके पास पुण्य है ण पुण्य मृत्य लोकम संती जैसे उसकी पुण्य खत्म हुए तो वो उसका मृत्युलोक में पुनर्जन्म हो जाता है जैसे स्वर्ग आप यह समझो जैसे स्वर्ग है फाइव स्टार होटल तो जब तक हमारे पास पैसे हैं तब तक हम खूब रहते हैं होटलों में रहो जो मर्जी वो मंगाओ जो मर्ज वो खाओ और जैसे ही पैसे खत्म हुई तो चलो भैया अपने घर ऐसे ही स्वर्ग है जैसे हम यहां पर पुण्य कर्म करते हैं तो हमें स्वर्ग लोग इत्यादि लोग मिलते हैं तो स्वर्ग में जैसे हमारे पुण्य खत्म हुए और तो मृत्यु लोक में विशांति लेकिन अब है मोक्ष भगवान के चरणों में समर्पित हो जाना ही मोक्ष है लीन हो जाना ये आत्मा यदि भगवान में लीन हो गई तो इसका मतलब है मोक्ष हो गया है तो यह यह मोक्ष केवल भगवत प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम भगवान का भजन करेंगे सारी भागवत का सार अंतिम भागवत का श्लोक यही है कि नाम संकीर्तन यस्य सर्व पाप प्रणास प्रणाम दुख समन तम नमामि हरिम परम अगर आप भगवान सारी भागवत का सार यह है कि आप भगवान का नाम लो इसी से मोक्ष है भागवत भी तो मोक्ष की बात करता है तो मोक्ष कब होगा जब आप भगवान का नाम लेंगे नाम संकीर्तन यस अच्छा जो श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म जी सबसे पहले कर्म प्रधान है और हम अगर भगवान की भक्ति में लीन होते
हैं तो कर्म और जो भक्ति में लीन होना है उ उसमें सामंजस्य बिठाना है

कर्म भी करना जरूरी है कर्म नहीं करेंगे तो फिर आप अकर्मण्य हो जाएंगे जी जी तो मुझे लगता है कि कर्म करें और कर्म के साथ साथ आप भगवान का भजन करें

अच्छा एक सवाल आता है कि जैसे आपने भगवत कथा में भी इसका जिक्र होता है कि मोक्ष मिलता है लेकिन उस उससे पहले हम अगर गरुड़ पुराण पढ़ते हैं जब किसी की मृत्य हो जाती है तो गरुड़ पुराण गरुड़ पुराण में उन सब बातों का जिक्र है कि अगर आप कोई पाप करेंगे तो आपको क्या उसका दंड मिलेगा तो अगर भगवत पुराण की कथा के थ गरुड़ पुराण की कथा का वाचन क्यों नहीं होता है ताकि जो लोग पाप करें वो पाप से डर और होता है क्यों नहीं होता है जब हम जब किसी की डेथ हो जाती कहीं पर कोई व्यक्ति के बाद होती उसके बाद लोग करवाते हैं गरुड़ पुराण ग डेथ के बाद कराते हैं डेथ से पहले क्यों नहीं कराते ये मेरा एक सवाल रहता है नहीं पहले करवाने की जरूरत नहीं पहले भी करवा सकते उसम विरोध थोड़ी है आप सुनने के लिए पहरे भी करवा दो हा अब इस कथा के बाद आप गरुड़ पुराण की कथा कहीं शुरू करवा दो तो अच्छी बात है हां ताकि लोगों को हा सुनि लोग हम तो चाहते हैं कि लोग करवाए लोगों को ज्ञान हो इस चीज का ताकि वो पाप की तरफ ना जाए उसके अंदर भय बना रहे भाई इस काम से यह चीज होता है तो सुनना चाहिए लोगों को इसको सुनना चाहिए

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और थोड़ा सा अगर आप गरुड़ पुराण के बारे में मोटी मोटी बातें बता सके क्योंकि हमारे गरुड़ पुराण में लिखा हुआ है कि जब मृत्य होती है तो मृत से और एक साल तक का जो सफर होता है जब वो बैकुंठ जाता है उस सफर में उसको किन किन रास्तों से गुजरना होता है सबसे पहले जब व्यक्ति की मृत्यु होती है ना तो मृत्यु के बाद उसको एक सूक्ष्म शरीर मिलता है उसको कहते हैं सूक्ष्म शर वो किसी को दिखाई नहीं देता है वो हवा दिखाई देती है क्या नहीं दिखाई देती लेकिन चलती तो है हवा चलती ई दिखाई दे लेकिन दिखाई नहीं देती उससे भी सूक्ष्म सूक्ष्म वो शरीर होता है उस सूक्ष्म शरीर के साथ उसकी यात्राएं शुरू होती है तो जैसे जैसे उसने कर्म कर रखे हैं ऐसे इसको उसको दंड मिलता उस यात्रा शरीर को अब उस शरीर को को कष्ट कैसे मिलता है जैसे कोई गर्दन काट ले कोई व्यक्ति गर्दन काट ले अब गर्दन नहीं कटती है लेकिन गर्दन कटने का दर्द होता है गर्दन कटती नहीं है सुई चुबी तो है चुपति भी नहीं लेकिन सुई चुपने का दर्द होता है उसी प्रकार जैसे जैसे उसके कर्म होते हैं उस अपने कर्मों के साथ संयम
नि पुरी से भगवान के व वहां प्रवेश करता है और फिर जैसे कहा जाता है कि उसको वैतरणी पार करनी होती है उसके पीप और जो जितने उसके कांटे हैं या उन रास्तों से गजना होता है उसके जै जैसे उसके कर्म होंगे उस कर्म के अनुसार उसको फल मिलेगा अगर उसने गौ दान किया है तो बैतरणी नाम की नदी से पार हो जाएगा अगर कभी गौ दन ही नहीं किया है कभी ब्राह्मण को वस्त्र दिया है तो अन्य अन्य नर कों से वह पार होता चले जाएगा अगर कुछ नहीं दिया बिल्कुल ही पापी है तो उसके लिए तो नर्क की सजा है ही भैया त तो कई वर्षों तक नर्क में रहना पड़ेगा अच्छा जो हमारे अभी नई पीढ़ी आ गई


है तो नई पीढ़ी आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नए नए टेक्निक आ गए उनका आध्यात्मिक तरफ से छ रुझान छूट रहा है ऐसा क्या किया जाए क्योंकि हमारे इतने सारे कथावाचक हो गए हैं हम देखते हैं टीवी पर देखते हैं तमाम बड़े-बड़े कथावाचक हैं वो अपनी कोशिश कर भी रहे हैं लेकिन ऐसा क्या हो सकता है कि हम अपने जो हमारी युवा पीढ़ी है उनको हम आध्यात्मिक की तरफ लाए अपने कर्म करें क्योंकि कर्म जरूरी है लेकिन उसके साथ-साथ अपने आध्यात्म और अपने सनातन से भी जुड़े उसके लिए सबसे पहले बच्चा जब तक छोटा है तो उसकी गुरु सबसे पहले गुरु उसकी मां होती है

तो जब तक बच्चा छोटा है तब तक मां-बाप को सबसे पहले आध्यात्म से जुड़ना पड़ेगा तो जब तक उनका बच्चा छोटा है किशोर अवस्था का है 10 -12 साल का है तो उस बच्चे को कभी आश्रम में ले गए किसी गुरुजी के पास ले गए कहीं कथा में ले गए भगवत कथा में ले गए तो उसके अंदर क्या होगा संस्कार भरे जाएंगे क बच्चे कार्बन कॉफी होते हैं उनके अंदर आप जो बोलोगे वो वही करेंगे जो सोच जो आप उनके अंदर सोच डालोगे तो वही करेंगे तो उनको सबसे पहले आध्यात्म की तरफ लाना पड़ेगा अब जब बड़े हो गए तब तुम कहोगे उन उन युवाओ के लिए तुम कथा सुनने जाओ श्राद्ध करो तर्पण करो यज्ञ करो

तब नहीं करेंगे वो लकड़ी जब तक कच्ची है तब तक उसका धनुष बन सकता है लेकिन जब अगर सूख जाएगी ना लकड़ी तब उसका यदि आप धनुष बनाने की सोचेंगे क्या बनेगा वो टूट जाएगी लकड़ी अगर सूखी लकड़ी का धनुष नहीं बनता जब तक लकड़ी कच्ची है तब तक इसलिए जब तक बच्चे छोटे हैं तो उन बच्चों को मां-बाप का कर्तव्य है कि पढ़ाई साथ साथ शिक्षा के साथ साथ अच्छी शिक्षा दो अपने बच्चों को माता शत्रु पिता वेरी येन बालो न पाठ न शोभते सभा म हंस मव को यथा वो माता-पिता बच्चों के शत्रु होते हैं जो उनको शिक्षा नहीं देता अच्छे पढ़ा लिखा अच्छी स्कूलों में पढ़ाओ हम भी चाहते हैं लेकिन उसके साथ-साथ उनको आध्यात्मिक की तरफ जोड़ो घर में हर बच्चा हनुमान चालीसा पढ़े ब्राह्मण का बच्चा है तो उसका जन संस्कार कराओ है ना ब्राह्मण के पुत्र का का जन संस्कार आठ वर्ष की अवस्था में होना चाहिए वैसे तो पांच बताया पर पा साल का बच्चा बहुत छोटा होता है बोध नहीं होता उसको जब 8 साल का हो जाए तो उसको उसको यज्ञ पवित्र संस्कार कराओ उसका है ना उसको किसी गुरु जी के सानिध्य में रखो है ना अपने आप भी जाओ जब वो धीरे धीरे सीखेगा तब वह बड़ा होकर के स्वयं आध्यात्म बन जाएगा

अच्छा आजकल हमने देखा कि बहुत सारे कथावाचक हो गए और जो कथा वाचन है एक अच्छी परंपरा है लेकिन जिस तरह से जो एक तरफ से प्रचार के लिए क या क्या हम कहेंगे कि वो सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं या अपना प्रचार कर रहे हैं इस पर आपकी क्या व्यू है मैं तो यह कहूंगा कि जब भी किसी ने कथा करवानी है सबसे पहले सोच समझ कर के कथा करें वेदव्यास जी ने सूद जी ने स्वयं कहा है कि सबसे पहले कथावाचक का निरीक्षण करें कि कैसा है कथावाचक व्यास जी ने स्वयं कहा विरक्त वैष्णव विप्रो वेद शास्त्र विशुद्ध दृष्टांत कुशल धीरो भक्ता कानि भक्ता कैसा होने विरक्त हो वैष्णव हो भगवत भक्त हो शास्त्रज्ञ हो और समझाने में कुशल हो ऐसा वक्ता होना चाहिए बाद बाकी आजकल तो भीड़ बहु बहुत बढ़ गई है उनसे सावधान रहे मैं यही कहूंगा सभी लोगों को अब ब्राह्मण है कि नहीं है अब कौन सा उसका खानदान है क्या प्रवर है क्या गोत्र है कुछ पता नहीं आजकल सब भागवताचार्य बन गए हैं पता नहीं यह भीड़ कहां से आ गई है तो जो कथा करवाने वाले हैं उनसे निवेदन है कि सबसे पहले आप निरीक्षण करें तब जाकर के कथा करवाए उनके बारे में तो हम और कुछ नहीं कह सकते अगर आप हमारे जो युवा पीढ़ी है कोई संदेश देना चाहते हैं कि क्या उनको चाहे आध्यात्मिक तरफ जाना हो उनको मोटिवेट करना हो उनको अपने कर्म युवाओं को यह संदेश है कि सबसे पहले आप प्रणाम करना सीखो प्रणाम करना होता क्या है कि आजकल कोई प्रणाम करना नहीं सीख रहा है आपके अंदर संस्कार तब आएंगे आपके भाग्य तब जग जब आप प्रणाम करना सीखोगे

दूसरी बात युवाओं को यह संदेश है कि अपने से बड़ों के साथ रहो आपका संग जैसा होगा ऐसा आपके पा साथ प्रसंग लगेगा अगर आप बीड़ी पीने वाले के संग में रहोगे तो बीड़ी पीना सीख जाओगे अगर आप नेताओं के संग में रहोगे तो नेतागिरी संग सीख जाओगे तो युवाओं को यह संदेश है कि सबसे पहले आप साथ चुनो कि अपने से जो मेधावी व्यक्ति है आपसे जो श्रेष्ठ व्यक्ति है उसका साथ करो और पुरुषार्थ करो .


क्योंकि पुरुषार्थ की चाबी से ही भाग्य का दरवाजा खुलता है आप कहेंगे हमारा भाग्य साथ नहीं दे रहा है हम तो मेहनत बहुत करते हैं नहीं पुरुषार्थ करते रहो भक्त जन परिश्रम और भगवत कृपा भगवान भी तब कृपा करता है जब भक्त परिश्रम करता है करना है तो करना है पार्वती जी की कथा आपने सुनी होगी पार्वती जी की जब तपस्या कर रही थी तो उनके सामने भी लोभ आया महाराज प्रलोभन आया क्या आप कहां शिव जी के लिए तपस्या कर ले हो शिव जीी तो निर्लज है कपड़े नहीं पहनता है भेष भूषा भी उनके अच्छी नहीं है भांग पीता है उनको छोड़ दो और हमने आपके लिए बहुत अच्छा दूल्हा ढूंढ रखा है बोले वोह कौन है बोले भगवान विष्णु है आप उनसे विवाह करो कहां ये शिव जीी के चक्कर में में पड़ी हुई हो तो पार्वती जी थोड़ी देर तो चुप रही और उसके बाद पार्वती जी ने बोलना प्रारंभ कर दिया कहा कि भले ही मेरे महादेव के अंदर बहुत सारे अवगुण है पर हे ऋषियों मेरा जो यह मन है ना यह महादेव के चरणों में अब लग गया है अब तो मैं 100 जन्म भी लूंगी तब भी मैं किसी और का चेय नहीं कर सकती हूं क्योंकि मैंने मन से भगवान शिव जी को मान लिया है मैं 100 जन्म भले लेने के लिए तैयार हूं लेकिन मैं विवाह करूंगी तो भगवान शंकर का ही करूंगी
बस यही मेरा अंतिम निर्णय है बस वो जो सप्त ऋषि अभी तक परीक्षा ले रहे थे जो प्रलोभन दिखा रहे वही चरणों में पड़ गए तो माया भगवान शिव हे देवी आप तो भगवान शिव जी की माया हो भगवान शिव जी ने ही मुझे आपके पास भेजा था तो लक्ष्य एक होना चाहिए जब तक तुम्हारा लक्ष्य तुम्हें प्राप्त ना हो जाए तब तक युवाओं के लिए यह निवेदन है कि आप करते रहो मेहनत करते रहो पसीना बहाते रहो यह आपके लिए हनुमान जी को ही देखलो हनुमान जी ने जब लंका जाना था ना तो हनुमान जी के सामने सोने का पर्वत आ गया कि हनुमान जी आप विश्राम करज लेकिन हनुमान तेही फरसा कर पुनि कीन प्रणाम राम काज
कीने बनो मोहि कहा विश्राम हनुमान जी कहते हैं जब तक मैंने राम जी का कार कार्य पूरा नहीं किया तब तक अपने राम को विश्राम नहीं है रुके नहीं हनुमान जी ने उस सोने के पर्वत को ठुकरा दिया आगे सुरष देवी आ गई कहा मुझे भूख लगी है देवताओं ने मुझे आहार दे दिया मैं खाऊंगी हनुमान जी ने मुझे राम काज करने के लिए आ मुझे मत खाओ क्यों खा रही हो जब नहीं माने तो हनुमान जी ने बोला खा ले उसने कई योजन दूर अपना मुंह फैला दिया हनुमान जी उसके मुंह में चले गए बाहर भी आ गए और कह दिया कि देवी आपने मुझे खा भी दिया और बाहर भी कर दिया तो जाने दे तो


उसी ने आशीर्वाद दे दिया तो कहने का ता यह है कि जब आप आगे बढ़ेंगे तो प्रकृति आपकी परीक्षा लेगी कुदरत आपकी परीक्षा लेगी ठोस करेगी आप इसके लायक हो कि नहीं हो जब आप हर जगह अड़े रहेंगे अब करना है तो करना है आगे बढ़ो कुछ भी होगा तो जब आप अपने लक्ष्य पर दृढ़ विश्वास करते हैं यह करना है तो करना ही है तब आप अपने लक्ष्य में पास हो जाते एक छोटी सी कहानी आपको मैं सुना देता हूं एक कमजोर देश था और एक शक्तिशाली देश था अब जो कमजोर देथा इस शक्तिशाली देश ने कहा कि इस पर आक्रमण करना है तो उसको एक चिट्ठी भेजी कि फलाने दिन आपके ऊपर आक्रमण होने वाला है अब जो
कमजोर देश था उसने कहा कि क्या होगा मंत्रियों से पूछा मंत्री वर क्या होगा तो उनमें से एक छोटा सा मंत्री था उसने कहा बोले महाराज एक काम हो सकता है यह हमारे ऊपर आक्रमण दो दिन बाद करेंगे और हम आज ही कर लेते हैं क्यों भैया बोले उनकी अभी तैयारी नहीं है वो अभी दो दिन के लिए तैयारी कर रहे कि दो दिन बाद सब इकट्ठा होंगे तब जाकर के आक्रमण करेंगे और हम अभी तैयारी में चलते हैं और देखना क्या होता है सबने राजा ने मान ली बात और सबने तैयारी करी महाराज चल पड़ी शक्तिशाली देश पर आक्रमण करने के लिए बीच पर एक पुल बांधता था दो दो देशों को राजा ने क्या किया कि


उस पुल पर आग लगवा दी लखड़ी का पुल था उस जमाने का उस पर आग लगवा दी सेना जब पार हो गई बोले महाराज अब पार कैसे होंगे बोले आप मारो या मरो अबब घर नहीं जाना अब मारो या मरो जाओगे तो आ जाओगे हार जाओगे तो मर जाओ हार जाओगे तो मर जाओ हो ग तो ऐसा आक्रमण दिखाया ऐसा बल दिखाया कि शक्तिशाली देश को पराजित कर दिया और वहां अपना झंडा लहरा दिया हैं तो जब आप ठान लेते हो कि ऐसा करना है तो करना ही है तो तब जाए कितनी भी सामने कितने भी संकट क्यों ना आ जाए हर संकट से आप पास हो जाते हो भगवती गंगा जी को ही देख लो जब भगवती गंगा जब गौ मुख से


चली होगी तो बड़े-बड़े पहाड़ भी तो सामने आए होंगे गंगा जी के जब पहाड़ सामने आए तो दिशा घुमा दी कोई कोई पत्थर सामने आ उसको लांग करके चले गई मुख्य रूप था सागर को पाना तो सागर को पा कर के ही रह गई इसलिए युवाओं को यह संदेश है कि अपना लक्ष्य मत छोड़िए मेहनत करते रहिए एक ना दिन आपका आपको सफलता अवश्य मिलेगी जय सियाराम तो आचार्य जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने इतनी उत्प्रेरक बातें कही और जो हमारे दर्शक है हमारे जो युवा पीढ़ी है उनको जरूर सीखने को मिलेगा और हमारा एक और जो उन्होंने कहा है उस पर अगर आप अमल करेंगे तो जीवन जरूर सफल होगा ,

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श्रीमद भगवत कथा का आयोजन स्वर्गीय भरोसनंद शर्मा की पहली पुण्यतिथि के मौके पर उनकी पत्नी श्रीमती विधाता देवी, जेष्ठ पुत्र विवेक शर्मा , कनिष्क पुत्र विनीत शर्मा और परिजनों ने किया. आयोजन उनके पैत्रिक निवास ग्राम फरासुला में हुआ.

श्रीमद भागवत कथावाचन व्यास जी आचार्य हिमांशु गैरोला ने किया .

विद्वान पंडित दिनेश बुढाकोटि और पंडित प्रदीप जदली ने आचार्य की भूमिका निभाई .

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